आर्य ही आर्य का दुश्मन क्यों
आर्य ही आर्य का दुश्मन क्यों
आज प्रायः हर आर्य समाज मे एक नारा लगाया जाता है कृण्वन्तो विश्वर्याम
संसार को आर्य बनाएं
स्वयं को आर्य बनाना कोई नही चाहता यही दुर्गति का कारण है ।
आज आर्यों की घटती संख्या पर कोई बात करना नही चाहता मैं प्रधान कैसे रहूं यही मुख्य उद्देश्य है ।
आज एक गलत व्यक्ति के पीछे तो पूरा समाज है सही आदमी को अपनी बात सिद्ध करनी पड़ती है ।
आज एक आर्य दूसरे आर्य की स्पोर्ट नही लेना चाहता क्योंकि वो उसका परिणाम पहले से ही जानता है ।
आर्य समाज बहुत से शिक्षक संस्थाएं और चिकित्सक संस्थाएं चलाता है जिसमें बाहरी आदमी अपना काम जल्दी करवाता है और निष्ठावान आर्य टकटकी आंखों से देखता रह जाता है ।
सत्य का उपदेश हर उपदेशक देता है पर मंच के ऊपर और मंच के पीछे की जिंदगी में दिन रात का फर्क है ।
कहीं आर्य समाज बन्द हो उसकी किसी को परवाह नही स्कूल कॉलेज की प्रधानगी ही मुख्य मुद्दा है ।
अपने बच्चों को आर्य समाज लाना नही चाहते दूसरे के बच्चो में बिस्मिल देखते है ।
घूमने फिरने के लिए समय है पौराणिक संस्थायों के लिए पैसा भी है लेकिन आर्य संस्थायों के लिए दम घुटने लगता है ।
हवन यज्ञ करने वाले 10 लोग है हाजरी लगाने वाले 50
फ़िल्म देखने घूमने फिरने समय से जाएंगे प्रोग्राम में समाप्ति पर आएंगे ।
आचार्य का सम्मान नही कार्ड पर बड़ी इज्जत से यज्ञ ब्रम्हा लिखा जाता है ।
शास्त्री का बच्चा शास्त्री नही बनता क्योंकि वो हालात जानता है ।
महर्षि दयानंद जी की जय हर कोई लगाएगा लेकिन उन्हें पढ़ना कोई नही चाहता ।
बातें कड़वी है लेकिन सच्ची है