अविद्या
संसार में दो चीज़ें चलती है अविद्या और विद्या । जो व्यक्ति अविद्या से ग्रस्त होता है, वह पूरा जीवन दुखी रहता है। और जो विद्या से युक्त होता है, वह शांति से जीवन को जीता है।
अविद्या का अर्थ क्या है? जो वस्तु जैसी हो उसको वैसा नहीं समझना अर्थात उल्टा-सीधा ही समझना। और विद्या का क्या तात्पर्य है? जो वस्तु जैसी हो उसको वैसा ही ठीक-ठीक समझना, और ठीक-ठीक समझकर वैसा ही व्यवहार करना।
कुल मिलाकर संसार में तीन वस्तुएं हैं। ईश्वर, आत्मा और प्रकृति। यदि कोई व्यक्ति ईश्वर आत्मा और प्रकृति को ठीक से नहीं समझता, तो वह अविद्या में है।
यदि ठीक समझकर ठीक व्यवहार करता है तो विद्या से युक्त है ।
अब अविद्या कैसी होती है, उसका एक उदाहरण।
क्या प्रकृति के जड़ पदार्थ सोना चांदी रुपया पैसा मकान मोटरगाड़ी इत्यादि आपको 100% सुख दे पाएंगे? नहीं दे पाएंगे. फिर भी लोग यही मानते हैं कि सौ प्रतिशत सुख देंगे। इसका नाम अविद्या है।
दूसरी बात , क्या कोई जीवात्मा आपको 100% सुख दे पाएगा? नहीं दे पाएगा। फिर भी यही मान कर लोग एक दूसरे के पीछे पड़े हैं कि यह व्यक्ति मुझे 100% सुख देगा।
तीसरी बात- क्या ईश्वर आपको 100% सुख दे पाएगा? हाँ, दे पाएगा। फिर भी लोग ईश्वर की ओर नहीं बढ़ते। ईश्वर को जानने समझने अनुभव करने का प्रयास नहीं करते। इसका कारण भी अविद्या है।
तो इस प्रकार से जो व्यक्ति अविद्या से युक्त होता है, वह अपने मन इंद्रियों पर संयम नहीं कर पाता। परिणाम स्वरूप पाप कर्म करता जाता है, और उसका फल दुख रूप जीवन जीता है। जो व्यक्ति इन तीन चीजों को ठीक से जानता है, और उचित व्यवहार करता है, वह सुखी रहता है, शांति से अपना जीवन जीता है, तथा दूसरों को भी सुख देता है -