भजन
ओ _राख के खिलौने(1)_
क्यों फिर लगा है सोने
बनने से राख पहले
जीवन ना देना खोने
जीवन सुधारने के
धेले लगें न पैसे
धनवान् तब ही बनता
जीवन चले जो लय से
धोबी तू बन जा ऐसा
लग जाये पाप धोने
कितना भी तू जतन कर
तृष्णा न होगी पूरी
मोह माया जाल फाँसे
प्रभु से करेंगे दूरी
कर भोग त्याग पूर्वक
लगे चैन से तू सोने
प्रभु कवि का काव्य पढ़कर
_त्रैतवाद(2)_ की ले शिक्षा
बिन वेद महिमा जाने
ना पा सकेगा दीक्षा
ऐश्वर्य-ज्ञान-धनबल
बाँटेगा कोने-कोने
ऋत-सत्य मार्ग तेरा
देगा प्रभु का दर्शन
दु:ख पाप दुरित आवे
कर मन का अघमर्षण
हो जा प्रभु समर्पित
लग जा उसी का होने
राख के खिलौने_(1)_ मिलान कीजिये यजुर्वेद 40/15
वा॒युरनि॑लम॒मृत॒मथे॒दं भस्मा॑न्त॒ᳪ शरी॑रम् ।
ओ३म् क्रतो॑ स्मर । क्लि॒बे स्म॑र । कृ॒तᳪ स्म॑र ।। १५ ।।
_त्रैतवाद(2)_ की ले शिक्षा :- त्रैतवाद अर्थात् ईश्वर, जीव और प्रकृति | मिलान कीजिये ऋग्वेद 1/164/20
द्वा सु॑प॒र्णा स॒युजा॒ सखा॑या समा॒नं वृ॒क्षं परि॑ षस्वजाते । तयो॑र॒न्यः पिप्प॑लं स्वा॒द्वत्त्यन॑श्नन्न॒न्यो अ॒भि चा॑कशीति ॥
साथ ही देखिये यजुर्वेद 40/1 :-
ओ३म् ईशा वास्यमिदं सर्वं यत्किञ्च जगत्यां जगत्। तेन त्यक्तेन भुञ्जिथाः मा गृधः कस्य स्विद् धनम् ॥१॥