कुछ आध्यात्मिक प्रश्नोत्तर-
1.ईश्वर किसे कहते हैं ? वह कैसा है ? कहाँ हैं ?
उत्तर:-ईश्वर एक अनादि, निराकार और सर्वव्यापी चेतन तत्त्व है जो इस जगत् का निमित्त कारण है और सबका आधार है। ईश्वर सत्+चित्+आनन्द है, अनन्त है तथा शुद्ध-बुद्ध-मुक्त स्वभाव वाला है। वह सबसे महान् सर्वज्ञ एवं सर्वशक्तिमान् है।असंख्य सृष्टियाँ तथा आत्माएँ उसी एक परमेश्वर में निवास करती हैं और वह परमात्मा स्वयं इन सबमें विद्यमान रहता है। ब्रह्माण्ड में कोई ऐसा स्थान नहीं है जहाँ ईश्वर की सत्ता न हो ।
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2. उपासना किस की और कैसे ?
उत्तर― उपासना उसी एक निराकार,सर्वज्ञ, अजन्मा, सर्वव्यापक ईश्वर की करनी चाहिए। उपासना का अर्थ है ईश्वर के समीप बैठना व ईश्वर के गुणों का चिन्तन करके उन्हें अपने जीवन में धारण करना। उपासना की विधि यह है कि―एकान्त स्थान में किसी ऐसे आसन में बैठें जिसमें सुखपूर्वक बिना हिले-डुले देर तक बैठा जा सके। फिर मन की एकाग्रता के लिए तीन प्राणायाम करें। फिर आँख बन्द करके ह्रदय या भृकुटि में ध्यान लगायें और ओ३म् का मानसिक जाप करें। धीरे धीरे जाप को बढ़ायें और जितना ओ३म् का जाप बढ़ेगा उतना ही ध्यान लगता जायेगा। उपासना के लिए अष्टाङ्ग योग के नियमों का पालन करना जरुरी है। योग के आठों अङ्गों का दृढता से पालन करें। कम से कम एक घण्टा अवश्य ईश्वर की उपासना करें।
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3. ईश्वर एक देशीय है या सर्वदेशीय ?
उत्तर―ईश्वर एकदेशी नहीं है, ईश्वर सर्वदेशी या सर्वव्यापक है। क्योंकि एकदेशी वस्तु साकार होती है और साकार वस्तु में गुण, कर्म, स्वभाव भी सीमित होते हैं। और एकदेशी या साकार जन्म मरण, भूख प्यास, हानि लाभ, सुख दु:ख आदि से नहीं बच सकता। और जो ईश्वर एकदेशी होता तो सब जगत को नहीं बना सकता और न सबके मन की बात जान सकता है।ईश्वर सर्वव्यापक है इसलिए सारे जगत का निर्माण करता है और सूक्ष्म परमाणुओं को पकड़ कर जगताकार करता है और सृष्टि की रचना करता है। एकदेशी वस्तु सृष्टि का निर्माण नहीं कर सकती और न सबके कर्मों के फल दे सकती है, क्योंकि जब एकदेशी होने से सबके अन्दर नहीं होने से सबके मन की बात नहीं जान सकता और न एकदेशी सर्वज्ञ हो सकता है।
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4. ईश्वर सर्वदेशीय है तो पाषाण की मूर्ति में क्यों नहीं ?
उत्तर―ईश्वर सर्वदेशीय है और सर्वदेशीय होने से पाषाण की मूर्ति में भी है। लेकिन मूर्ति पूजा से ईश्वर की प्राप्ति नहीं हो सकती क्योंकि मिलना वहीं होता है जहां आत्मा और परमात्मा दोनों हैं। और ऐसा स्थान उपासक का अन्त:करण है। मूर्ति में उपासक का आत्मा प्रवेश नहीं कर सकता। और दूसरे मूर्ति जड़ है और आत्मा चेतन और परमात्मा भी चेतन।अत: जड़ मूर्ति से चेतन ईश्वर की प्राप्ति नहीं हो सकती। चेतन ईश्वर की प्राप्ति तो चेतन आत्मा द्वारा ही होगी।
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5. जीव अंश है या पूर्ण है ?
उत्तर―जीव नित्य है न इसका आदि है और न अन्त। अत: जीव अंश नहीं है। जीव एक नित्य चेतन सत्ता है। अंश सावयव पदार्थ का होता है निरवयव का नहीं।पूर्ण तो केवल ईश्वर है। जीव आनन्द की खोज में ईश्वर की और बढ़ता है और ईश्वर भक्ति करता है। और कर्म फल भोक्ता है। ईश्वर के बन्धन में है। इस दृष्टि से जीव अपूर्ण है परन्तु स्वरुप की दृष्टि से जीव पूर्ण है अर्थात् आत्मा को बनाने वाला कोई नहीं वह एक अनादि चेतन सत्ता है इस दृष्टि से आत्मा पूर्ण है।
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6.ईश्वर से हमारा क्या सम्बन्ध है ?
उत्तर-व्यापक-व्याप्य,पिता-पुत्र,गुरुशिष्य,राजा-प्रजा,साध्य-साधक ।ईश्वर,जीव व प्रकृति-ये तीन वस्तुयें अनादि हैं शाश्वत हैं eternal है। तीनों के अपने अपने गुण हैं,तीनों सूक्ष्म हैं। ईश्वर सर्वज्ञ है,जीवअल्पज्ञ है,प्रकृति अज्ञ अर्थात ज्ञान रहित है जड है।
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7. जन्म मरण के बन्धन से छूट कर मोक्ष प्राप्ति के उपाय क्या हैं ?
उत्तर- अविद्या अर्थात ईश्वर जीव प्रकृति सम्बन्धी विपरीत ज्ञान को दूर करना, वेदानुकूल आचरण, सत्संग, विवेक, वैराग्य, षट सम्पत्ति, मुमुक्षत्व, यज्ञ व योगादि निष्काम कर्म । कई जन्मों के निरन्तर प्रयास से एक निश्चित अवधि तक मोक्ष की प्राप्ति होती है वह निश्चित अवधि है- इक्कतीस नील, दस खरब व चालीस अरब वर्ष अथवा जितना समय छतीस हजार बार सृष्टि उत्पत्ति व प्रलय काल का होता है।