सफलता
जीवन में सफल होना सभी चाहते हैं। भले ही उनकी सफलता की परिभाषा अलग-अलग हो, या सफलता का क्षेत्र अलग अलग हो। जिस भी क्षेत्र में वे उन्नति करना चाहते हैं, सफलता प्राप्त करना चाहते हैं, तथा उस सफलता की प्राप्ति के लिए पुरुषार्थ भी करते हैं। उनमें से बहुत से लोग अपने अपने क्षेत्र में सफल भी हो जाते हैं। परंतु सफलता प्राप्त होने पर एक दोष स्वाभाविक रूप से उत्पन्न होता है, जिसे अभिमान कहते हैं। यदि कोई व्यक्ति सफलता प्राप्त करके अभिमानी हो जाता है, तो उसकी प्रगति रुक जाती है। प्रगति रुक ही नहीं जाती, बल्कि उस का पतन आरंभ हो जाता है। और जितने अधिक लंबे समय तक वह अभिमानी रहता है, उतने अधिक लंबे समय तक वह असफल दुखी परेशान होता रहता है।
तो आप भी अपने अपने क्षेत्र में सफलता प्राप्त करें। अवश्य प्राप्त करें। ईमानदारी तथा बुद्धिमत्ता से मेहनत करें, ईश्वर आपको अवश्य ही सफलता देगा।
परंतु अभिमान को सदा पहचानते रहें। कहीं आप में अभिमान तो नहीं आ गया? कहीं अभिमान बढ़ तो नहीं रहा? ऐसा आत्म निरीक्षण सदा करते रहें। यदि पता चल जाए कि अभिमान आ रहा है, तो उसे तुरंत नष्ट करें। अभिमान का विरोधी गुण है, नम्रता। ईश्वर को साक्षी मानकर अपनी सफलता का श्रेय सबसे अधिक मात्रा में ईश्वर को देवें। और अन्य माता पिता गुरुजनों आदि की सहायता से जो आपने सफलता प्राप्त की है, उनको भी यथायोग्य मात्रा में, सफलता का श्रेय प्रदान करें। इस प्रकार से आप विनम्र होकर अभिमान को जीत सकते हैं।
सार यह हुआ कि आप में जितनी अधिक नम्रता रहेगी, ईश्वर आपको उतना ही अधिक सफल बनाएगा। इसलिए अभिमान का नाश करें, नम्रता को जीवन में अपना कर आनंदित होवें।