वैदिक भजन


मृदु वीणा बजी जब कानन में 
सुनने चले आए कुरंग वहाँ 
जब दीपक दिव्य प्रकाश हुआ 
जमा हो गये प्रेमी पतंग वहाँ 
भ्रमरों का वहाँ दल आ पहुँचा 
खिल उठे सुगंधित फूल जहाँ 
गुण ज्ञान विशेषित हो नर में 
गुण ग्राहकों का फिर अभाव कहाँ 


बड़े प्रेम से ओ३म् से मन लगा ले 
अपने हृदय में ज्योति जला ले 
बड़े प्रेम से ओ३म् से मन लगा ले 


बजे चार प्रातः, शौच आदि जाओ 
व्यायाम करके, शुद्ध जल से नहाओ 
जमा फिर आसन, समाधि लगा ले 
बड़े प्रेम से ओ३म् से मन लगा ले 


उसकी दया से ये, मनुष्य तन मिला है 
सदुपयोग कर इसका, जो जीवन मिला है 
इसे कर न देना, ठगों के हवाले 
बड़े प्रेम से ओ३म् से मन लगा ले 


दया, दीन दुखियों पे, दिल से किया कर 
गरीबों को भोजन, वस्त्र-धन दिया कर  
परम सुख मिलेगा, कभी आजमा ले 
बड़े प्रेम से ओ३म् से मन लगा ले 


भूल कर किसी को, कभी ना सताना 
भटके हुओं को, सुपथ पर चलाना 
अरे बेदी !! तू भी प्रभु गीत गा ले 
बड़े प्रेम से ओ३म् से मन लगा ले


 


 


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