वेद में सत्य पर विचार-1

                                                                     


वेद में सत्य पर विचार-1

ऋग्वेद में अनेक मन्त्र इस प्रकार के आते हैं जो सत्य पर प्रकाश डालते हुए सत्य के महत्त्व के दर्शन कराते हैं | इन मन्त्रों से यह बात स्पष्ट होती है कि हमें सदा सत्याचरण ही करना चाहिए | इससे ही कल्याण संभव है | इस सम्बन्ध में ऋग्वेद ४.३३.६ में इस प्रकार उपदेव्ह किया गया है :-
सत्यामूचुर्नर एवा हि चक्रुरनु स्वधामृभवो |
विभ्राजमानांश्च्मसा ँ अहेवावेनत्त्वष्टा चतुरो दाद्दश्वान् ||ऋग्वेद ४.३३.६ ||
मनुष्य सत्य सदा बोलें
यह मन्त्र उपदेश कर रहा है कि संसार के सब मनुष्य सदा सत्य ही बोलें , सत्य का ही आचरण करें | सत्य में महान् शक्ति है किन्तु यह मिलती उसी को ही है , जो सत्य के मार्ग पर चलते हैं और सदैव सत्य भाषण ही करते हैं | | सत्य ही एकमेव एसा मार्ग है , जिस पर चल कर विश्व की महान् उपलब्धियां प्राप्त की जा सकती हैं जो असत्य से कभी नहीं मिल सकतीं | इसलिए मन्त्र का यह प्रथम उपदेश है कि सदा सत्य ही बोलें और सत्य का ही आचरण करें |
सत्य ज्ञान से ही कर्म करें
मनुष्य को परमपिता परमात्मा ने कर्म करने के लिए इस धरती पर भेजा है | उसे प्रभु ने कर्म करने की स्वतंत्रता भी दी है किन्तु इस स्वतंत्रता को भी प्रभु ने एक पाश में बाँध दिया है ,वह यह कि जीव जो भी कर्म करेगा , उन कर्मों को करने में तो वह स्वतन्त्र है किन्तु उन किये गए कर्मों का फल भोगने के लिए वह प्रभु की व्यवस्था के आधीन है अर्थात् फल पाने के लिए प्रभु ने उसे स्वतन्त्र नहीं रखा | वेद प्रभु का ही दिया हुआ ज्ञान है | इस कारण इस मन्त्र में जो भी उपदेश है वह परमपिता परमात्मा का दिया हुआ उपदेश ही तो है | इसलिए इस पंटर के इस चरण में वह पिटा प्राणी मात्र को उपदेशकर रहे हैं कि मनुष्य जो भी कर्म करे वह सत्य ज्ञान के अनुसार ही करे | इससे स्पष्ट है कि असत्य ज्ञान के आधार पर अथवा अज्ञान के आधार

पर किया गया कर्म भी प्रभु स्वीकार नहीं करते इसलिए उनहोंने उपदेश किया है कि हमारा प्रत्येक कर्म सत्य ज्ञान पर ही आधारित होना चाहिए |
सत्य ज्ञानी पौषण शक्ति को प्राप्त हों
परमपिता इस धरती पर सत्य ज्ञान का अधिक से अधिक प्रयग होता देखना चाहते हैं | प्रभु की प्रतेक प्राणी से यह आकांक्षा रहती है कि वह सदा सत्य ज्ञान का ही अनुसरण करे | इस कारण यहाँ प्रभु उपदेश कर रहे हैं कि जिस प्रकार अत्यधिक प्रकाश से प्रकाशित सूर्य की किरणें जल को ग्रहण किया कराती हैं तो उनमें ऋत का उदय होता है | प्रभु चाहते हैं कि सब प्राणी भी ऋत को पाने के अधिकारी बनें , सदा सत्य ज्ञान का आचरण करें , उनके पास भरपूर तेज हो तथा भारापुर ऐश्वर्यों के वह स्वामी हों | इस प्रकार के गुणों से भरपूर विद्वान् जन इस सत्यमयी स्वधा शक्ति से अपनी आत्मा की धारण करने वाली तथा पौषण करने वाली शक्ति को सदा प्राप्त करें |
कर्मों को कांति सम चमकते हुए देखें
इस प्रकार से सत्य का दर्शन करने वाला प्राणी सूर्य के सामान तेजस्वी पुरुष निश्चय पूर्वक, सदैव धर्म, अर्थ, काम , मोक्ष रूपी इन चारों प्रकार के कर्मों को बादलों के समान , सब प्रकार के भोगने योग्य पदार्थों को देने वाले प्रभु , तथा सब परकार के अन्नों के समान तथा विशेष प्रकार के प्रकाश से प्रकाशित कांटी के समान चकते हुए न केवल देखें ही अपितु इन्हें देखने की सदा ही कामना करते रहें |
इस मन्त्र का मनन व चिंतान्कराने पर हम पातें कि ऋग्वेद के इस मन्त्र के माध्यम से उप्देश्काराते हुए परमपिता परमात्मा ने चार बातों पर बल दिया है , जो इस प्रकार हैं :-
मनुष्य सदा सत्य बोलें
सत्य ज्ञान से ही कर्म करें
सत्य ज्ञानी पौषण शक्ति को प्राप्त हों
कर्मों को कांति सम चमकते हुए देखें

मन्त्र के माध्यम से परमपिता परमात्मा ने इन चार बिन्दुओं पर ऋग्वेद के अध्याय चार सूक्त ३३ के मन्त्र संख्या ६ में यह स्पष्ट किया है किस्टी ही सब सुखों का अआधार है , सत्य के प्रकाश में निवास करते हुए ही हम धर्म का आचार्नकर सकते हैं | इस मार्ग के पथिक के मुखमंडल प्रसादा काँटी छि रहती है और इस पथ के पथिक विशेष रूप से पुष्ट होते हैं | उन में उत्तम एआरएम अरने की शक्ति सदा बनी ही नहिंराहती अपितु बढाती भी रहती है | इस तथ्य के आधार पर ही हम कह सकते हैं कि महर्षि दयानंद सरस्वती जी एक दुदृष्टा मह्पुरुष थे | उनहोंने परमपिता परमात्मा के उपदेशों को निकट से जाना था | प्रभु के उपदेशामृत अर्थात् वेद ज्ञान का गहन स्वाध्याय कर के उसे आत्मसात् किया था और जब आर्य समाज के नियम बनाने का समय आया तो उनहोंने सत्य प्रभु के इस सत्याचरण के उपदेश को ही प्राथमिकता दी और आर्य समाज के नियमों में प्रथम स्थान सत्य को ही दिया और कहा कि “ सब सत्य विद्या और जो पदार्थ सत्य से जाने जाते हैं उन सब का अदि मूल परमेश्वर है |
इन शब्दों से स्पष्ट होता है कि सब प्रकार के सत्य और उन सत्यों से जिन पदार्थों को जाना जा सकता है , उन सबके मूल में परमपिता परमेश्वर ही निवास करता है | इसलिए हमेंसदा सत्य का ही आचारंकरना क्व्हाहिये | असत्य से सदा दूर रहना चाहिए | इस में इ हमारी उन्नति है , इस में ही हमारी समृद्धि है और इसमने ही हमें दहन ऐश्वर्यों की प्राप्ति है | अत: सत्य को कभी न छोड़ें |





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