वेदमंत्र
उद्वन्दनमैरतं दंसनाभिरुद्रेभं दस्रा वृषणा शचीभिः।
निष्टौग्र्यं पारयथः समुद्रात्पुनश्च्यवानं चक्रथुर्युवानम्॥ ऋग्वेद १-११८-६।।
हे पाप वृत्ति को नष्ट करने वाले अश्विनों, तुम उत्तम विचार, उत्तम उपासना और उत्तम कर्म करने वालों को समृद्ध करते हो। जो मनुष्य हिंसा करने की ओर बढ़ते हैं उन्हें हिंसा से दूर करते हो। प्रभुस्तवन करने वालोें को विषय भोग के समुद्र से पार करते हो। मनुष्य में सदैव युवा जैसी ऊर्जा भरने वाले हो।