असली संबंध रखें, वही वास्तविक सुख देता है, नकली नहीं

   


 


                                                             


 


 


 


असली संबंध रखें, वही वास्तविक सुख देता है, नकली नहीं।
        संसार में लोग एक दूसरे से व्यवहार करते हैं। घर के सदस्यों को छोड़कर, बाहर के लोगों के साथ जो व्यवहार होता है, वह परिचित लोगोंं के साथ भी होता है, और   बस, रेल, विमान, बाजार इत्यादि स्थानों पर अपरिचित लोगों के साथ भी व्यवहार होता है। अपरिचित लोगों के साथ थोड़ी देर का व्यवहार होता है, लेकिन परिचितोंं के साथ तो बार-बार व्यवहार होता है। धीरे-धीरे एक दूसरे की पहचान हो जाती है। परस्पर व्यवहार बढ़ने लगते हैं। यदि लंबे समय तक व्यवहार चलते हैं, तो धीरे धीरे संबंध भी बन जाते हैं। और ये संबंध यदि हृदयपूर्वक अर्थात् असली या ईमानदारी से संबंध बनाए जाते हैं, तो सुखदायक भी होते हैं।
 परंतु कहीं कहीं औपचारिकता मात्र निभाने के लिए भी कुछ संबंध चलते रहते हैं। (ऐसे संबंधों के अनेक कारण हो सकते हैं. यहां हम कारणों की चर्चा नहीं करेंगे।)
हम तो इस समय केवल इस प्रसंग को कहना चाहते हैं कि यदि आप दूसरे लोगों के साथ कुछ संबंध रखते हैं, तो वे संबंध 2 प्रकार के हो सकते हैं। 
एक - हृदय पूर्वक वास्तविक संबंध। और दूसरे - सिर्फ दिखावे के लिए नकली संबंध। यदि आप असली संबंध रखते हैं, हृदय से दूसरे का सम्मान सेवा करते हैं, तो ऐसे संबंध आपको सुखदायक होंगे। और यदि आप दिखावे मात्र के लिए नकली संबंध रखते हैं , तो ऐसे संबंध सुखदायक तो नहीं होंगे, आपके कुछ स्वार्थ की सिद्धि अवश्य करा देंगे। जैसे नौकरी आदि में अपने बॉस के साथ अनेक लोगों को औपचारिक संबंध रखने पड़ते हैं।
फिर भी यदि आप किसी से संबंध रखते हैं और उस संबंध से सुख भी चाहते हैं, तब तो वास्तविक श्रद्धापूर्वक संबंध रखें। यदि ऐसा संभव न हो, और संबंध रखना भी  मजबूरी हो, तो अपने स्वार्थ की सिद्धि के लिए भले ही संबंध रखें, परंतु वहाँ सुख की आशा न रखें। और यदि उस औपचारिक संबंध को तोड़ना भी संभव हो, तो उसे तोड़ कर अकेले रहें, तो ज्यादा सुखी रहेंगे।


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