जरा सोचो बार बार सोचो.......

 


 


 


जरा सोचो बार बार सोचो.........
वो जो सोते हुए परीन्दों को पेड़ से नीचे नहीं गिरने देता
एक हम इंसान हैं जो झुठे पुरुषार्थ का नाम लेकर उस वो(परम सत्ता परमात्मा) पर अविश्वास अविश्वास ही जीवन भर करते हैं कि हमें बीच मझधार छोड़ देगा
सच्चा पुरुषार्थ वो होता है कि जिसमें उस परम सत्ता परमात्मा (वो)के प्रति समर्पित समपर्ण हो..


मेरी कश्ती में कोई खुबी नहीं।
फिर भी हैरां हुं कि क्यों डूबी नहीं।।
मेरी कश्ती का तु ही पतवार है।
मेरी नैया का तु् खेवनहार है।।
कौन है मेरा यहां तेरे सिवा।
तु ही है- न है कोई दूसरा।।
तेरे दामन में मुसाफिर आ गिरा।
मांगता है प्यार तेरा हे पिता।।


इतना सुन मेरा वो- जो आत्मा में समाया हुआ परम आत्मा बोला----
पुत्र समर्पित हो सुन.....
सुन यह क्या कहता है तेरा रोम रोम
ओ३म्--ओ३म्--ओ३म्--ओ३म्
जान-मान-जीवन में जीवंत कर


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