कृष्ण की कूटनीति
कृष्ण की कूटनीति
सत्य को जिताने के लिए कभी कभी चालाकी की भी जरूरत होती है,
और आर्य ग्रन्थो मे इसका उदाहरण भी है,
लेकिन आज का हिन्दू तो
उस होशियारी की कल्पना भी नही कर सकता,
उदाहरण से समझाते है,
वैदिक साहित्य मे आया है कि
पहले शत्रु को फोडे, उससे डरने का नाटक करे, उसे लगे कि आप उससे डर रहे हो
जिससे वह थोड़ा ढीला या लापरवाह हो जाए,
लेकिन जैसे ही शत्रु से सामना हो पूरी क्षमता से उस पर प्रहार करके उसे नष्ट कर दे,
अब सत्य की स्थापना के लिए यही बात आप किसी हिन्दू को बोलकर देखो तो वह क्या कहेगा. ???
हिन्दू तुरंत ही धर्मात्मा बनने का ढोंग करने लगेगा,
( कि चालाकी नही करनी चाहिए आदि आदि )
वास्तविकता मे वह उसकी धार्मिकता नही बल्कि
अपनी नपुंसकता को छिपाने का बहाना है, वास्तव मे वह लडना ही नही चाहता, और ध्यान रहे जिस जाति ने अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष नही किया देर सवेर वह दुनिया के नक्शे से मिट गयी.
जब अत्यंत शक्तिशाली वैदिक राजा जिन्हे किसी विदेशी से खतरा भी नही था वह भी सत्य की स्थापना के लिए संघर्ष करते थे तो हम क्या है,
क्या हम उनसे बडे धर्मात्मा हो सकते है. कभी नही
तो हम असत्य के विरुद्ध संघर्ष क्यो नही करना चाहिए
अवश्य करना चाहिए
अब सुनो जो उपर मैंने वैदिक सिद्धांत दिया है,
उसे योगराज कृष्ण ने
किस चतुराई से लागू किया है
कृष्ण युद्ध मे कर्ण से डरने का तब तक नाटक करते रहे जब तक कि उससे सामना नही हुआ, उसे फोड़ने की भी कोशिश करते रहे,
लेकिन जैसे ही सामना हुआ
फिर पूरी शक्ति से अर्जुन को उससे लडाया और उसे तुरंत मारने का आदेश भी दे दिया
क्या कृष्ण पूजा का ढोंग करने वाली हिन्दू जाति वास्तव मे
कृष्ण की वीरता उनकी चतुराई से कभी शिक्षा लेगी ???
ध्यान रहे आप इस्लाम और आतंकवाद जैसे राक्षस को झुनझुना बजाकर नही भगा सकते, उसका सामना करने के लिए
आपको वीरता और चतुराई दोनो का प्रयोग करना ही होगा और कोई विकल्प नही है
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