वेद मंत्र
स्तवा नु त इन्द्र पूर्व्या महान्युत स्तवाम नूतना कृतानि।
स्तवा वज्रं बाह्वोरुशन्तं स्तवा हरी सूर्यस्य केतू।।
ऋग्वेद २.११.६.
मैं स्वागत करता हूँ
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मैं स्वागत करता हूँ नवीन कृतियों का,
मैं स्वागत करता हूँ उस वज्र का
जो आर्य की बाहुओं में
हलचल मचा देता है।
सूरज के उन अश्वों का स्वागत करता हूँ
जो दौड़ाते-दौड़ाते
क्षितिज के उस पार ले जाते हैं
दुर्घर्ष इच्छाओं को।
मैं स्वागत करता हूँ उन नूतन विचारों का
जो ले आते परिवर्तन की सम्भावना
और युग की अधुनातन प्रेरणाएँ।
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