वेद में शरीर को मिट्टी का घर कहा है।

वेद में शरीर को मिट्टी का घर कहा है।
 ओ3म् --मो षु वरुण मृन्मयं गृहम् राजन्न अहम् गमम् ।
मृडा सु क्षत्र मृडय ।।
ऋग्वेद 7/89/1
भावार्थ-
हे सबसे श्रेष्ठ पूजनीय वरण करने योग्य -सब विघ्र -बाधावों से रक्षा करने वाले सु राजन् परमात्मन्  मैं मिट्टी के घर -इस पार्थिव शरीर -कच्चे घर मे बार 2 न प्रवेश करूँ । अस्थिर -नश्वर देह अब  अगले जन्म न प्राप्त करूँ। मुझे स्थिर घर- -,मुक्तिरूप  देह प्रदान कर सुखी करो।मेरे द्वारा अन्यों को सुखी करो।
मिट्टी का घर  विष प्रयोग में नीला पड़ जाता है:शस्त्र से खण्ड 2 हो जाता है-पानी मे गल जाता है-नाना रोगों से कांतिहीन हो जाता है-बुढापे में जीर्ण हो जाता है-  आग में जल जाता है।
जबकि मुक्तिरूप गृह सब द्वन्द्व -बाधावों से परे  अजेय -देवतावों की अयोध्या नगरी है।
वेद मंत्र में दयालु ईश्वर का जीव को सुझाव है कि वह योग्य बनकर मुक्तिरूप  गृह को पा सकता है।



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