अवतारवाद - मिथ्या

 



 


 


 


अवतारवाद - मिथ्या
            


        🌷जो लोग कहते हैं कि "ईश्वर अवतार लेकर, शरीर-धारण कर भक्तों का उद्धार और पापियों का नाश करता है।" तो क्या ईश्वर बिना शरीर धारण किये भक्तों का उद्धार और पापियों का नाश नहीं कर सकता? इस समय ईश्वर का कोई भी अवतार नहीं है तो भी पापी और महापापी मरते ही हैं। जो जन्मा है वह अवश्य ही मरता है। क्या अब जो ईश्वर भक्ति करते हैं, उनका उद्धार नहीं होगा?


दूसरे―ईश्वर को शरीर धारण करने की कोई आवश्यकता ही नहीं है, क्योंकि ईश्वर अनन्त, सर्वव्यापक होने से पापियों के शरीरों में भी परिपूर्ण हो रहा है जब चाहे तब उसी समय मर्मच्छेदन करके नाश कर दे।


     अनेक रोग हैं जैसे पेटदर्द, हैजा, कैंसर, ज्वर, दस्त, गलघोटू आदि रोग। जल्दी मारने वाले और अधरंग आदि रोग दुर्दशा करके मारने वाले रोग। ईश्वर कोई रोग करके पापियों को मार दे। ह्रदय गति बन्द करके जल्दी से जल्दी मार देवे। ईश्वर पापियों को भूकम्प करके मार देवे। भूकम्प से अनेक जगह हजारों लोगों के मरने के प्रमाण हैं। मेघविद्युत से वर्षा के समय मार देवे। ऐसी अनेक बातें हैं जिनके द्वारा ईश्वर पापियों को मार देवे फिर ईश्वर को अवतार-शरी रधारण करने की आवश्यकता ही क्या है?
जब ईश्वर शरीर धारण किये बिना ही सृष्टि रचना, पालन, प्रलय करता है। असंख्य लोक-लोकान्तर, सूर्य, चन्द्र, भूमि आदि का भ्रमण कराता है,  धारण करके नियम में रखता है तो रावण, कंस आदि पापी, महापापी ईश्वर के आगे एक मच्छर के समान भी नहीं? क्या ऐसे शूद्र जीवों के लिए ईश्वर को शरीर धारण करना पड़े? ईश्वर अवतार शरीरधारण करना जगत में इससे मिथ्या, आश्चर्यजनक और मूर्खता की अन्य कोई भी बात नहीं है? 


    अत: ईश्वर अपरिणामी, कूटस्थ, निर्विकार, एकरस होने से तीनों कालों में अर्थात् सदा निराकार रहता है। 


'ईश्वर शरीरधारी' होने में जो-जो समस्यायें, बाधायें, दोष हैं वे निम्नलिखित हैं―


(१) ईश्वर शरीरधारी होने पर भोक्ता हो जायेगा, जबकि ईश्वर अभोक्ता है।


(२) ईश्वर शरीरधारी होने पर अनन्त न रहेगा, जबकि ईश्वर अनन्त है।


(३) ईश्वर शरीरधारी होने पर सर्वव्यापक न रहेगा, जबकि ईश्वर सर्वव्यापक है।


(४) ईश्वर शरीरधारी होने पर सर्वज्ञ, सर्वान्तर्यामी न रहेगा, जबकि ईश्वर सर्वज्ञ सर्वान्तर्यामी है।


(५) ईश्वर शरीरधारी होने पर सृष्टि कर्त्ता, धर्त्ता न रहेगा जबकि ईश्वर कर्त्ता धर्त्ता है। 


(६) ईश्वर शरीरधारी होने पर सर्वद्रष्टा, सब जीवों को कर्मानुसार फल देने वाला न रहेगा, जबकि ईश्वर सर्वद्रष्टा सब जीवों को कर्मानुसार फल देने वाला है।


(७) ईश्वर शरीरधारी होने पर सर्वाधार न रहेगा, जबकि ईश्वर सर्वाधार है।


(८) ईश्वर शरीरधारी होने पर अनन्त बल, क्रिया वाला न रहेगा जबकि ईश्वर अनन्त बल क्रिया वाला है। 


(९) ईश्वर शरीरधारी होने पर सर्वशक्तिमान,पूर्ण न रहेगा, क्योंकि साकार की शक्ति भी सीमित होती है जबकि ईश्वर सर्वशक्तिमान, पूर्ण है।


(१०) ईश्वर शरीरधारी होने पर अचल न रहेगा, जबकि ईश्वर अचल है।


(११) ईश्वर शरीरधारी होने पर निराकार निर्विकार-कूटस्थ न रहेगा, जबकि ईश्वर निराकार निर्विकार-कूटस्थ है।


(१२) ईश्वर शरीरधारी होने पर सम्पूर्ण जगत को गति नहीं दे सकता, क्योंकि अप्राप्त देश में कर्त्ता की क्रिया असम्भव है, जबकि ईश्वर सम्पूर्ण जगत को गति देता है।





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