मनुष्य -- मनुष्य बनो ।

 


 



 


आज का वैदिक विचार है ।मनुष्य -- मनुष्य बनो ।


दिखने में सभी व्यक्ति मनुष्य दिखाई देते हैं और आज मनुष्य का शरीर उनके पास में है किंतु उनके गुण कर्म स्वभाव के अनुसार वह मनुष्य नहीं है ।


आज का समाज मनुष्य को हिंदू ,मुसलमान, सिख, इसाई व अन्य मत-सम्प्रदायों में दीक्षित करना चाहता है ,बनाना चाहता है।


हिंदू बनाना चाहता है, मुसलमान बनना चाहता है ,इसाई बनाना चाहता है , संसार में जितने भी मत- मतांतर- संप्रदाय-मजहब हैं ,वह अपने आप को धर्म मानते हैं किंतु वह धर्म नहीं है, मजहब है, संप्रदाय हैं ,मत हैं , इसलिए बंधुओं धर्म तो केवल एक ही है, वह है - वैदिक धर्म ,मनुष्य धर्म ,उसको समझे, उसको जाने वेद ही एकमात्र ऐसा ग्रंथ है, वैदिक धर्म में ही ऐसा एक धर्म है ,जो कहता है कि मनुष्य बनो।


एक ही बात कहता है मनुष्य बनो । मानवता को अपने जीवन में धारण करो, मनुष्य बनना बड़ा कठिन है ,मनुष्य का अर्थ होता है जो सोच कर ,विचार कर ,चिंतन कर, कार्य करता है वह मनुष्य के कहलाता है ।


मनुष्य हमेशा अपने जीवन में उन्नति के पथ पर जाना चाहता है ,मनुष्य स्वार्थी नहीं होता मनुष्य अपने लिए हि कार्य नही करता है अपितु मनुष्य प्रत्येक प्राणी के हित के लिए कार्य करता है ।


मनुष्य, देवता और राक्षस तीन प्रकार के लोग दुनिया में पाए जाते हैं ।


देवता नहीं बन सकते तो कम से कम मनुष्य बने यही बात यह मंत्र कहता है।


मनुष्य बनकर दिव्य संतानों को उत्पन्न करो ।


मनुष्य बनकर दिव्य समाज का निर्माण करो ।



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