आओ भक्तो शान बढ़ायें वैदिक धर्म महान की


 


 


 


आओ भक्तो शान बढ़ायें वैदिक धर्म महान की


सत्य मार्ग के सत्य-पथिक तुम सत्य धर्म को अपनाओ,
अबतक तुम जो पा न सके "सत्यार्थ प्रकाश" पढ़कर पाओ।
वेद-शास्त्र एक ज्ञान-कोष है, धर्म-ज्ञान है जिससे होता,
नहीं दूसरा मार्ग है कोई, जिससे नष्ट अज्ञान है होता।
शिव शंकर के परम भक्त हों, पथ ऐसा तुम अपनाओ,
जिससे नष्ट अज्ञान है होता, ब्रह्म तत्व का ज्ञान भी होता।
भक्तो गीत सदा सब गायें, वैदिक धर्म महान् की,
युग-युग से जो निधि रही है, सद्विद्या सद्ज्ञान की।


चतुर्दशी के अंधकार में क्यों भटक रहे नादान हो,
चेतन हो कर पूज रहे हो, निश्चेतन निष्प्राण को।
हे! सत्य-पथिक क्यों भूल गये हो, परमपिता भगवान को,
जगपालक वह जगन्नियंता, जिसने रचा संसार को।
आओ भक्तो ज्योति जलायें वैदिक धर्म महान की,
युग-युग से जो निधि रही है, सद्विद्या सद्ज्ञान की।


राष्ट्र हमारा भारत प्यारा सब का रहा गुरुद्वार है,
वेदज्ञान का दीप जलाकर सबका किया उद्धार है।
कल्पतरु यह वेदवृक्ष है, श्रेष्ठ ज्ञान भंडार है।
गाते रहते ऋषि-मुनि और गाता सब संसार है।
दुर्भाग्य हमारा भूलकर उसको पूजा करें पाषाण की,
युग-युग से जो निधि रही है, सद्विद्या सद्ज्ञान की।


आदित्य, अंगिरा, अग्नि, वायु, गौतम, कपिल, कणाद, हुए,
व्यास, मनु, पातंजलि, शंकर, मैत्रेयी, गार्गी महान हुए।
राम, कृष्ण, गांधी और नेहरू, राजेन्द्र, लाला, सुभाष हुए,
महावीर, गौतम, कबीर, विवेकानन्द, रविदास हुए।
इसी भूमि पर तेगबहादुर, बीर हकीकत राय हुए,
खातिर देश के सत्यव्रती सब वीर शूर बलिदान हुए।
वैदिक धर्म की रक्षा हेतु दयानन्द ने विषपान किया,
खाकर गोली सीने पर श्रद्धानन्द ने बलिदान दिया,
सत्य धर्म के खातिर सबने लगा दी बाजी प्राण की।
युग-युग से जो निधि रही है सद्विद्या सद्ज्ञान की,
आओ भक्तो ज्योति जलायें वैदिक धर्म महान की।


प्रतिमा क्या है जिसको हमने इन हाथों से उभारा है,
कलाकार की शिल्पकला है सुन्दर अति नजारा है।
क्या प्राणहीन पाषाण कभी चेतन का बना सहारा है?
लेकिन मूढ़ पंडे हैं कहते कितनों को इसने तारा है।
प्राण-प्रतिष्ठा से क्या पत्थर बन सकता भगवान है,
यह तो कर्मफलों का चक्कर देता, जो फलदान है।
प्रतिमा-पूजन वेदविरुद्ध है, यह लीला पुराण की,
युग-युग से जो निधि रही है, सद्विद्या सद्ज्ञान की।


कलियुग में एक ऋषि हुआ इस गूढ़ तत्व तत्त्व को पहचाना,
वैदिक-धर्म विस्तार किया और ज्ञान का डंका बजवाया।
अंध-भक्ति का अंधकार, अज्ञान, अस्पृश्यता, बाल-विवाह,
सभी कुरीतिओं की जड़ उसने प्रतिमा-पूजन बतलाया।
करें वन्दना उस गुरुश्रेष्ठ की निर्मल निश्छल विद्वान् की,
युग-युग से जो निधि रही है, सद्विद्या सद्ज्ञान की।


शिवरात्रि के पावन क्षण में, सत्यं शिवं का ध्यान करें,
रचा है जिसने इस दुनियाँ को उसी का बस गुणगान करें।
महाशक्ति वह व्याप्त सभी में एक ही सर्वाधार है,
सच्चिदानन्द चेतन स्वरूप है हम उसके आभार हैं।
वही शिव और ब्रह्म वही है विष्णु रूप में व्याप्त वही है,
अग्नि वही है, वरूण वही है, जीवात्मा में प्राण वही है।
वह अतीन्द्रिय अगोचर है अन्दर-बाहर सदा वही है,
बहुत दूर और पास वही है, निराकार निर्विकार वही है।
वह कवि मनीषी पापमुक्त है, स्वायम्भुव पर कायमुक्त है,
वह विद्यमान सर्वत्र सदा अवतरण दोष से सदामुक्त है।
परमाणु में शक्ति वही है नक्षत्रों में चमक उसी से
सत्यं शिवं सुन्दरं वही है जड़-चेतन में प्राण उसी से।
केवल करें उपासना उसकी नहीं मूर्ति पाषाण की,
युग-युग से जो निधि रही है, सद्विद्या सद्ज्ञान की।


"ओ३म्" अजन्मा अनन्तरूप में अदृश्य अमूर्त्त महान् है,
जन्म-मृत्यु से सदा मुक्त है वह तो महतो महीयान् है।
वह तो ज्ञान गुणों का सागर-प्रतिमा कैसे बनेगी उसकी,
ज्ञान प्रकाश अवतरित है होता अद्भुत, अनुपम छवि है उसकी।
उसी "ओ३म्" का जाप करें जो सब का दयानिधान है,
युग-युग से जो निधि रही है, सद्विद्या सद्ज्ञान की।


आओ भक्तो शान बढ़ायें वैदिक धर्म महान की,
युग-युग से जो निधि रही है, सद्विद्या सद्ज्ञान की।


प्रस्तुति-- प्रियांशु सेठ




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