आज का वैदिक भजन
आज का वैदिक भजन
धिग दाना दीम ताना
धिग दाना दीम ताना
धिग दाना दीम ताना,
दा ना ना
धिग दाना दीम ताना
धिग दाना दीम ताना
धिग दाना दीम ताना,
दा ना ना
जीवन की अभिलाषा को तुम,
पूरी करो हे सच्चिदानन्द !!
रात दिन तुझमें मगन,
रमता जाये तुझमें मन
सदके जाऊँ तेरे भगवन्,
ओ३म् नाम का दे रतन
धिग दाना दीम ताना
धिग दाना दीम ताना
धिग दाना दीम ताना,
दा ना ना
अरविन्द सा खिल जाये प्रेम भरा मन,
हों जिसमें तेरे दर्शन
व्यर्थ ना जाये सुन्दर जीवन,
कर दे रसमय आत्मन्
अंजार कर दे भक्ति भरा मन,
कर दे प्रेम का दीप दीपन
पाप दुरित अन्धकार को हर लें,
कर दे ज्ञान से परिपावन
कर सञ्चार
अनबुझ प्यार
हृदयहारी करुणा कन्द
श्रुतियों के श्रुतार्थ से मन को होवे परिक्षालन
गीत मनोहर श्रुतिकण्ठ से
निकलें ओ३म् ओ३म् मन भावन
चातक पिहु पिहु गीत ज्यूँ गाये,
ओ३म् ओ३म् मन गाये
बादल बरसे ओ३म् नाम के
स्नान करे हृदय चित्त मन
प्रीत की प्यास
मिलन की आस
बरसे नैन से प्रेम सुवन
रचनाकार व स्वर :- श्री ललित सहानी जी – मुम्बई
सदका = न्यौछावर होना
अरविन्द = कमल
अंजार = प्रकाश
श्रुति = वेद
श्रुत्यार्थ = वो अर्थ जो सुनते ही
परिक्षालन = पूर्ण शुद्ध, विशुद्ध
श्रुतिकण्ठ = ज्ञान का कण्ठ
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