बड़ा बनना (सम्मान प्राप्ति करना) कौन नहीं चाहता | परन्तु तपस्या करना प्रायः कोई नहीं चाहता।
बड़ा बनना (सम्मान प्राप्ति करना) कौन नहीं चाहता | परन्तु तपस्या करना प्रायः कोई नहीं चाहता।
सब लोग बड़ा बनना चाहते हैं, सम्मान प्राप्त करना चाहते हैं। परंतु क्या केवल चाहने मात्र से काम हो जाता है? नहीं होता।
जो भी कार्य आप सिद्ध करना चाहते हैं, उसके लिए आपको बहुत तपस्या करनी होगी। मुफ्त में संसार में कुछ नहीं मिलता। और अगर कहीं मिलता दिखाई भी दे, तो लेना नहीं। समझ लेना कि वहां कहीं ना कहीं कुछ धोखा है। कुछ चालाकी है। ऐसी स्थिति में उल्टा लेने के देने पड़ जाएंगे। जब अपना बहुत कुछ खो बैठेंगे, तब मुफ्त में देने वाले की चालाकी समझ में आएगी। शायद आपने ऐसी कुछ घटनाएं देखी सुनी भी होंगी।
इसलिए मुफ्त में खाने या लेने की इच्छा नहीं रखनी चाहिए। यदि कभी कभार कहीं, मुफ्त में थोड़ा कुछ मिल भी जाए, तो उसका आनंद आपको नहीं आएगा। जैसे किसी व्यक्ति को अपने बाप दादा की बनी बनाई करोड़ों की संपत्ति मिल जाए, तो वह उसका मूल्य नहीं समझता। और वह व्यक्ति उसे यूँ ही उड़ाता रहता है। फिर भी उसे कोई विशेष आनंद नहीं मिलता। आनंद तो तभी आता है जब व्यक्ति अपने खूब परिश्रम से किसी वस्तु को प्राप्त करता है, सोच समझ कर खर्च करता है, तभी उसको अच्छा आनंद भी मिलता है।
तो बहुत से लोग सिर्फ भौतिक पढ़ाई की डिग्रियां और इधर उधर से धन संपत्ति इकट्ठी कर के ऐसा समझते हैं कि हम बहुत सुखी हो गए। हम बहुत बड़े हो गए। लोगों को हमारा सम्मान करना चाहिए। हमारी सेवा करनी चाहिए। परंतु यह वास्तविकता नहीं है।
बड़प्पन इन सब भौतिक धन संपत्तियों से नहीं आता। बल्कि बड़प्पन तो ईश्वरीय गुणों को धारण करने से आता है। जिस व्यक्ति में ईश्वरीय गुण- वेदों की विद्या वैराग्य सेवा परोपकार सच्चाई ईमानदारी सभ्यता नम्रता इत्यादि ईश्वरीय गुण हों, वही व्यक्ति वास्तव में बड़ा है। इन गुणों के कारण वास्तविक बड़प्पन माना जाता है। यदि आप भी बड़े बनना चाहते हों, तो इन ईश्वरीय गुणों को धारण करें। स्वयं प्रत्यक्ष अनुभव करके देखें, कि इन गुणों को धारण करने से कितना आनंद मिलता है। तभी आप अनुभव कर पाएंगे, कि वास्तविक बड़प्पन यही है।
- स्वामी विवेकानंद परिव्राजकन
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