महाभारत में मूल कृष्णा चरित्र
महाभारत में मूल कृष्णा चरित्र ......
सम्राट आर्य 8109070419
अजीब लगता है आज टेलिविजन में प्रसारित कार्यक्रम में कृष्णा नाम पर नंगापन व्यभिचार फैलाया जाता है जो उनके मूल चरित्र के विपरीत अवधारणा है मात्र ही है ।
किसी भी महापुरषों के विषय मे जानना है तो उस काल के प्रथम ग्रंथ से मालूम कर सकते है जैसे श्री राम के विषय मे जितना उत्तम वर्णन वल्मीकि रामायण कर सकती है उतनी रामचरितमानस नही वैसे ही श्री कृष्णा का वर्णन महाभारत जितने अच्छे से कर सकती है उतना कोई अन्य ग्रंथ नही ।
महाभारत में :-
न कृष्णा के 16000 रानियों का वर्णन है
न रासलीला की
न गोपियों के रमन की
न लंपट मखंन चोर होने की
न राधा जैसे किसी अन्य स्त्री का प्रेम प्रसंग की
उसके विपरीत महाभारत में कृष्णा
आदर्श पति,
महान योगी ब्रम्हचारी
धर्मयुक्त एक महान व्यक्ति के रूप में वर्णन है
अपनी बचपन के विषय मे कृष्णा स्वम् महाभारत में बोलते है कि
ब्रह्मचर्य महाद्धोरं चीत्र्वा द्वादश्वर्षिकम्।
हिमव्तपार्श्वमास्थाय यो मया तपसार्जितः ।। समान व्रत चारिण्यां रुक्मण्यां योऽन्वजायत।सन्तकुमारस्तेजस्वी प्रद्युम्नो मे सुतः(सौप्तिक पर्व 12 / 30-31)
मैंने 12 वर्ष ब्रह्मचर्य का पालन कर हिमालय कि कन्दारों में रहकर बड़ी तपस्या के द्वारा जिसे प्राप्त किया था , मेरे समान व्रत का पालन करने वाली रुक्मिणी देवी के गर्भ से जिसका जन्म हुआ है , जिसके रूप में साक्षात् तेजस्वी सनत्कुमार ने ही मेरे यंहा जन्म लिया है , वह प्रद्युमन मेरा प्रिय पुत्र है .....
अर्थात कोई 12 का कोई ब्रम्हचारी कोई व्यक्ति रासलीला
नही कर सकता है .
इसके अलाबा बलराम एवम कृष्णा अपने भाई बहन के साथ 12 वर्ष की आयु बृंदावन छोड़ गए थे । कोई 12 वर्ष के आयु कोई बालक कैसे रासलीला करेगा !!!!!
महाभारत मे सभा पर्व में कृष्णा का प्रशन्सा में भीष्म कहते है
वेदवेदांगविज्ञानं बलं चाभ्यधिकं तथा।
नृणां लोके हि कोऽन्योऽस्ति विशिष्टः केशवादृते।।
दानं दाक्ष्यं श्रुतं शौर्य ह्रीः कीर्तिबुद्धिरुत्तमा।
सन्नतिः श्रीकृतिस्तुष्टिः पुष्टिश्च नियताच्युते।।
(महाभारत , सभापर्वणि अर्घाभिहरणपर्व, अध्याय ३८, श्लोक १९,२० गीताप्रैस, गोरखपुर)
अर्थात् वेद, वेदांग के विज्ञान तथा सभी प्रकार के बल की दृष्टि से मनुष्य लोक में भगवत् श्रीकृष्ण के समान दूसरा कोई भी नहीं है। दान, दक्षता, वेदज्ञता, शूरवीरता, लज्जा, कीर्ति, उत्तम बुद्धि, विनय, श्री, धैर्य, तुष्टि ( सन्तोष ) एवं पुष्टि ये सभी सद्गुण भगवान् श्रीकृष्ण में नित्य विद्यमान हैं........
कोई छलिया,दुराचारी ,कामुक व्यक्ति वेद विज्ञान के ज्ञान का स्वमी नही बन सकता ।
इसीलिए राजसयू यज्ञ पर प्रथम आहुति के लिए श्री कृष्ण को ही चुना गया ,,,
इसी सन्धर्व में शिशुपाल कृष्णा के विबाद हुआ उसमे शिशुपाल ने सब कुछ अभद्र बात बोली नही राधा रासलीला की बात नही बोला ......
संजय भी कृष्णा के महिमामंडल करते हुए बोलता है कि
यत्रयोगेश्वर कृष्णो यत्रप्रार्थो धनुर्धरः | तत्र श्री विजयो भूतिर्बुवा नीतिर्मतिर्मम ( भीष्मपर्व 18/78 )....
योग में इस्वर कृष्णा और धनुर्धर अर्जुन जहां भी रहे विजय तो उनकी होगी ............
ये योगी एक राजनीतिज्ञ संयमी महापुरुष को छलिया दुराचारी कामुक बोलना उनका अपमान से कम नही है ...
आइए आज उनकी जन्मदिवस के शुभावसर पर असली महान कृष्ण को जाने ........
नॉट- कृष्णा की गलत दुर्प्रचार और गप्पे पुराण करती है जो महाभारत के अनेक वर्षों के बाद लिखी गयी जो सर्वमान्यता प्राप्त नही .........
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