परमपिता परमात्मा ने हमारे सुख के लिये सृष्टि की इतनी सुन्दर रचना की है
मोक्षदाता प्रभु की भक्ति करें डा.अशोक आर्य
परमपिता परमात्मा ने हमारे सुख के लिये सृष्टि की इतनी सुन्दर रचना की है, जिसे देख कर हम चकित हो जाते हैं| एक एक सितारे को ,पिंड को आकाश में बड़े सुन्दर ढंग से सजाया है जो सदा अपना अंतर बनाये रखते हैं| इस कि चर्चा प्रभु ने इस मन्त्र में इस प्रकार की है:_
येन द्यौरुग्रा पृथिवी च दृढा येन स्व: स्तभितं येन नाक: |
योƧअन्तरिक्षे रजसो विमान: कस्मै देवाय हविषा विधेम || यजु. ३२.१६ ||
स्वामी जी ने इस मन्त्र का अर्थ इस प्रकार किया है:-
जिस परमात्मा ने तीक्ष्ण स्वभाव वाले सूर्य आदि और भूमि को धारण किया, जिस जगदीश्वर ने सुख को धारण किया और जिस ईश्वर ने दु:ख रहित मोक्ष को धारण किया है ,जिस परमात्मा ने तीक्ष्ण स्वभाव वाले सूर्यादि और भूमि को धारण किया, जिस जगदीश्वर ने सुख को धारण किया और जिस ईश्वर ने दु:ख रहित मोक्ष को धारण किया है, जो आकाश में सब लोक लोकान्तरों को विशेष मानयुक्त अर्थात् जैसे आकाश में पक्षी उड़ते हैं वैसे सब लोकों को निर्माण करता और भ्रमण कराता है, हम लोग उस सुखदायक कामना करने के योग्य परब्रह्म की प्राप्ति के लिए सब सामर्थ्य से विशेष भक्ति करें|
१ . तीक्ष्ण स्वभाव वाले सूर्य आदि को धारण किया
इस सृष्टि में सूर्य को सब से अधिक तीक्ष्ण माना गया है और पृथिवी भी तीक्ष्णता का गुण रखती है| इस प्रकार से और भी बहुत से पदार्थ होते हैं, जो स्वभाव से ही तीक्ष्ण होते हैं इन सब को धारण करने वाला अथवा संभालने का कार्य करने वाला ईश्वर ही है|
२ . सुख को धारण किया
इस संसार में जितने प्रकार के सुख हैं उन सबका आदि स्रोत ईश्वर ही होने के कारण हम कह सकते हैं कि सुखों को धारण करने वाला भी वह जगदीश्वर ही है|
३ . दुखरहित मोक्ष को धारण किया
इतना ही नहीं परमपिता परमात्मा हम सब को अपने दंड विधान से दंड देकर उन्हें हमारे से दूर अथवा अलग करने वाला है| इस प्रकार हमें दु:खों से रहित कर देता है| जहाँ दुःख नहीं होते वहां स्वयमेव ही सुखों का राज्य हो जाता है इस प्रकार परमपिता परमात्मा हमें दु:खों से दूर कर सुखपूर्ण मोक्ष के मार्ग पर ला देता है|
४ . आकाश में सब लोकों को निर्माण कर्ता और भ्रमण कर्ता
हम देखते हैं और इस बात को भली प्रकार से जानते भी हैं कि आकाश रूप में एक विशाल रिक्त स्थान है इस रिक्त स्थान पर चाँद सितारे सूर्य तथा अनेक पिंड रूपि धर्तियां बिना किसी सहारे के अपने चारों और भी चक्र लगा रहे हैं और अपने सूर्य के चारों और भी चक्र लगा रहे हैं| ऐसा करते हुए उन्हें आज लगभग १९७२९४९१२२ वर्ष व्यतीत हो चुके हैं, जो कि सृष्टि के आधे से भी कम समय है किन्तु आज तक हमने कभी न तो देखा है और न ही सुना है कि कभी कोई गृह अथवा नक्षत्र दुर्घटनाग्रस्त हुआ हो| कभी कोई गृह इस प्रकार नहीं टकराया जैसे हमारी गाड़ियां टकरा जाती हैं| यह परमपिता परमात्मा की ही विशेषता है कि उन्होंने इन सब को इस प्रकार व्यवस्थित किया है कि वह भ्रमण करते हुए अपने मार्ग से नहीं भटकते और कभी दुर्घटना ग्रस्त होते ही नहीं क्योंकि इन सब का निर्माण और भ्रमण कराने वाला वह ईश्वर ही है|
५ . सुखदायक कामना करने के योग्य परब्रह्म:
वह ईश्वर सब को सुख देने वाला है| वह तो चाहता है कि उसकी संतान सदा सुखी रहे हम सब मिलकर उस कामना करने के योग्य परब्रह्म पिता को पाने के लिए अपने सब सामर्थ्य से उसकी विशेष भक्ति करें, उसका स्मरण करें और इस निमित्त ही हम नित्य उसके पास बैठकर उसकी प्रार्थना रूप स्तुति करें|
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