"स्वाधीनता संग्राम, ऋषि दयानन्द और आर्यसमाज"
आचार्य करणसिह नोएडा
"स्वाधीनता संग्राम, ऋषि दयानन्द और आर्यसमाज"
*आज हम सब मिलकर भारतवर्ष की आजादी का 73वां स्वतंत्रता दिवस मना रहे हैं। बहुत ही प्रसन्नता का विषय है। आजादी का इस दिन को देखने के लिए भारत के अनेक वीर, वीरांगनाओं ने अपना बलिदान दिया इतिहासकार लिखता हैकि अट्ठारह सौ सत्तावन की क्रांति से लेकर 15 अगस्त 1947 तक जो बलिदान हुए वह एक बहुत बड़ी संख्या थी। सरकारी आंकड़े के अनुसार उसमें जेल जाने वाले फांसी खाने वाले लोगों की संख्या 7,31000 थी।
*यह आजादी हमें बहुत बड़ी कीमत चुकाने के बाद प्राप्त हुई। 15 अगस्त की खुशियां मनाने से पहले हमें यह भी विचार करना होगा। यदि ऐसे अवसर पर हम चार ऋषियों को यहां याद न करें, तो आजादी का जश्न अधूरा ही माना जाएगा। अट्ठारह सौ सत्तावन की क्रांति जिन्होनेप्रारम्भ करायी थी। उनमें पहले थे,स्वामी ओमानंद सरस्वती उनके शिष्य पूर्ण सरस्वती और उनके शिष्य विरजानंद सरस्वती उनके शिष्य दयानंद सरस्वती थे। चार ऋषि यों ने अट्ठारह सौ सत्तावन की क्रांति की शुरुआत करायी थी। अट्ठारह सौ तरेपन में एक विशाल बैठक सोरों एटा के जंगल में बुलाई गई थी। जिसमें चारों सन्यासी और उस समय के कुछ महान क्रांतिकारी भी उपस्थित हुए थे।दिन में वीरांगना लक्ष्मीबाई, तात्या टोपे, नानाजी देशमुख,ठाकुर दुर्जय सिंह आदि क्रांतिकारी उपस्थित हुए थे।
* तीन वर्ष मंथन करने के बाद अट्ठारह सौ सत्तावन में इस क्रांति को अंजाम दिया गया। इस क्रान्ति का चिन्ह कमल का फूल और रोटी था। क्रांति पूरी तरह से सफल हुई और उसकी चिंगारी अपनी यौवन की ओर बढ़ती चली गई, और अपना विकराल रूप धारण किया। महर्षि दयानन्द सरस्वती के के विषय में इतिहासकारों का मानना है कि मैं ऋषि दयानंद ने अज्ञात होकर 3 वर्ष भारत के स्वाधीनता संग्राम में लगाएं।
* महर्षि दयानंद सरस्वती ही वे पहले व्यक्ति थे। जिन्होंने सबसे पहले अपने अमर ग्रंथ सत्यार्थ प्रकाश में स्वराज की मांग की और लिखा कि चाहे विदेशी राजा मातृवत प्यार देने वाला हो, फिर भी उनका राज्य त्याज्य है।अपना स्वराज्य होना चाहिए। अपना राज होना चाहिए।यह ऋषि दयानंद सरस्वती ने सबसे पहलेअपने अमर गृन्थ सत्यार्थ प्रकाश मे लिखकर मांग उठाई।उनके अमर गृन्थ सत्यार्थ प्रकाश को पढ़कर अनेक क्रांतिकारी क्रांति के दंगल में कूद पड़े। भारत माता की आजादी के लिए लड़ते हुए अपने प्राणों की बाजी लगा दी।
* प्रति वर्ष यह दिन पूरे देश के अंदर बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। लाल किले की प्राचीर से देश के माननीय प्रधानमंत्री जी अपना उद्बोधन देते हैं और देश के विकास की बात करते हैं। योजनाओं की घोषणा करते हैं। महर्षि दयानंद सरस्वतीआदि ऋषियो का नाम न दिया जाए तो उनके प्रति कृतघ्नता ही मानी जाएगी। ऐसे शुभ अवसर पर हमें ऋषि दयानंद को अवश्य करना चाहिए। ऋषि दयानंद और उनके द्वारा स्थापित आर्य समाज के द्वारा किये गये योगदान को यह देश कभी भुला नहीं पाएगा ।आर्य समाज ने देश की आजादी के लिए बढ़-चढ़कर के बलिदान दिया है, और आज भी आर्यसमाज देश भक्ति के कार्य करते हुए देश की प्रगति में अपना योगदान दे रहा है। शिक्षा के क्षेत्र में जितना कार्य आर्य समाज ने किया है इतना किसी अन्य दूसरे संगठन ने नहीं किया दलितों और पिछड़ों को जो सम्मान आर्य समाज ने दिया है। वे किसी अन्य संगठन ने नहीं दिया। यह पुरातन इतिहास भी हमें जानना चाहिए लेकिन दुर्भाग्य है इस देश का इस देश का मीडिया आज इन विषयों पर चर्चा नहीं करना चाहता है। देश के सामने यह इतिहास अवश्य ही आना चाहिए।जिससे भावी पीढियाँ प्ररेणा ले सके।