दूसरों को बार-बार गलती करने का अवसर न देवें


दूसरों को बार-बार गलती करने का अवसर न देवें। इसमें आपकी बुद्धिमत्ता नहीं मानी जाएगी।
       हमें प्रतिदिन अनेक लोगों के साथ व्यवहार करना पड़ता है। किसी के चेहरे पर तो लिखा नहीं है, कि यह व्यक्ति ईमानदार है या धोखेबाज है। धीरे-धीरे अनुभव से ही समझ में आता है, कि कौन ईमानदार है, और कौन धोखेबाज है! 
      और यह सब व्यवहार में परीक्षण करने से ही पता चलता है। यह परीक्षण करना आवश्यक भी है। यदि आप अपने आसपास के लोगों का परीक्षण नहीं करते, उनसे सावधान नहीं रहते, तो ऐसे लोग आपको निश्चित रूप से हानि पहुंचाएंगे। बार-बार आपको धोखा देंगे, और लूटेंगे।
       सब लोग इतने ईमानदार नहीं हैं, इतने सीधे सच्चे नहीं हैं, जितना आप उनको समझते हैं। बल्कि अनुभव तो यही बताता है कि, संसार में अधिकतर लोग बेईमान हैं। अवसर की तलाश में रहते हैं। अवसर मिलते ही घोटाला करते हैं। आपको मेरी बात पर विश्वास न होता हो, और आपको परीक्षण करना हो, तो आप कर भी सकते हैं। सड़क पर ₹ 500 का एक नोट गिरा दीजिए और छुप कर देखिए, क्या होता है ? जिसकी भी नजर  पहले पड़ गई, बस वही ले जाएगा। इससे आपको पता चल गया न, कि लोग कितने ईमानदार हैं? ऐसे लोगों से भरी पड़ी है यह दुनियाँ।
         कुछ लोग तो इसलिए ईमानदार दिखते हैं, क्योंकि उन्हें बेईमानी या घोटाला करने का अवसर नहीं मिला। अपवाद स्वरूप कोई लाखों में एक आध मिलेगा, जो अवसर मिलने पर भी घोटाला न करे। अन्यथा अवसर मिलते ही, सभी घोटाला करेंगे। अवसर मिलने पर भी जो लाखों में एक आध व्यक्ति घोटाला नहीं करता, इसका क्या कारण है? इसका कारण है कि उसे ईश्वर का दंड समझ में आया है, कि "यदि मैं घोटाला करूंगा, तो ईश्वर मुझे कुत्ता सूअर हाथी बंदर सांप बिच्छू आदि योनियों में भयंकर दंड देगा।" इस प्रकार से जिसको ईश्वर का दंड समझ में आ जाता है, वह कभी घोटाला नहीं करता। और जिसे दंड समझ में नहीं आता, वह अवसर मिलते ही घोटाला करता है।
      अब आप को रहना तो इसी पृथ्वी पर ही है। इन्हीं बेईमान लोगों के साथ रहना भी है, और उनसे अपनी रक्षा भी करनी है। तो सोचिए, आपको कितना सावधान रहना होगा। हर व्यक्ति का परीक्षण करना होगा। और जो व्यक्ति परीक्षण नहीं करेगा, वह बार-बार धोखा खाएगा। दुष्ट बेईमान या धोखेबाज लोगों को वह अच्छा व्यक्ति मान लेगा, और उन्हें बार-बार लूटने का अवसर देगा। ऐसा अवसर देने वाला व्यक्ति कम से कम बुद्धिमान तो नहीं कहलाएगा। फिर क्या कहलायेगा? मूर्ख ही कहलायेगा। वह जितनी  अधिक बार धोखा खाएगा, उतना ही बड़ा मूर्ख कहलाएगा।
        अब आप विचार कीजिए, आपके सामने दो रास्ते हैं। पहला - या तो बिना परीक्षण किए दुष्टों से बार-बार धोखा खाते रहें, मूर्ख बनते रहें, और लुटते रहें। दूसरा - या फिर परीक्षण करके दुष्टों और धोखेबाजों से सावधान रहें। अपनी सुरक्षा रखें, और सुख पूर्वक जीएँ।  आपको 2 में से जो मार्ग अच्छा लगे, वही अपना लीजिए।
- स्वामी विवेकानंद परिव्राजक 


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