जम्मू में एक वृद्ध सन्यासी जी एक योगाश्रम में रहते थे
जम्मू में एक वृद्ध सन्यासी जी एक योगाश्रम में रहते थे । मैं उनके पास 10 महीने रहा । वे आर्य सन्यासी न थे मगर उनके पास सारी पुस्तकें आर्य समाज की थी । वे राजनेता टाइप सन्यासी थे । वे सन्ध्या रोज करते थे । कई बार वे रात को 11 बजे आते मगर सन्ध्या जरूर करते थे । वे अपना भोजन खुद बनाते थे । भोजन बनाते रहते और सन्ध्या करते रहते जोर जोर से बोलकर । सुबह कई बार 10-11 बजे भी सन्ध्या करते थे । उनका एक ही तरीका था कि भोजन से पहले सन्ध्या करनी ही करनी ।
उनके पांच पुत्र थे , सभी अरब पति थे । जम्मू के सबसे बड़े रधुनाथ बाजार में उनके शोरूम थे । पांचों बेटों के अपना अपना करोड़ों का कारोबार था । उनका एक बेटा जम्मू में ही जज था । एक दिन ।।।।।
एक दिन वे दौड़ते दौड़ते मेरे पास आए और बोले - ओ ईश्वरा ! देख मेरे बेटे का नाम अखबार में आया है । खबर का हैडिंग पढा तो लिखा था - (यदि सारे जज ऐसे हो जाएं तो यह देश स्वर्ग बन जाए )
अखबार में उनके बेटे की ईमानदारी पर बड़ा लेख छपा था । स्वामी जी ने बताया कि मैंने अपने जज बेटे को बोल रखा है कि जिस दिन मुझे किसी ने झूठ से भी कह दिया कि तेरे जज बेटे ने रिश्वत ली है तो मैं जीते जी मर जाऊंगा । फिर कभी मुझे पिता जी न कहना और मुझसे मिलने भी न आना ।
स्वामी जी बोले - जब यह छोटे वाला लड़का नया नया जज बना तो एक दिन अपनी पत्नी के साथ सरकारी गाड़ी में मुझे मिलने आया तो मैंने मिलने से , बात करने से मना कर दिया । मैं बोला - मुझसे मिलना है तो अपनी गाड़ी में आया करो , अब जाओ । उस दिन के बाद अपनी गाड़ी में आता है ।
स्वामी जी बोले - जवानी में मैं गरीब था , मैं भगवान से केवल धन मांगता था । आज उस बात पर हंसी आती है । लगभग 40 साल की उम्र में मैंने सन्ध्या करनी शुरू की । आज तक एक भी दिन ऐसा नहीं आया कि मैंने सन्ध्या न की हो । सन्ध्या करने वाले का भगवान बड़ा ध्यान रखते हैं , प्रभु उसे संसार के सर्वोत्तम सुख के साधन प्रदान करते हैं । जिस प्रकार किसी आदमी की देश के प्रधानमंत्री से दोस्ती हो जाए तो वह आदमी अपने को भाग्यवान समझता है , भगवान तो सारी दुनिया के प्रधानमंत्रियों के भी बाप हैं , उनसे दोस्ती का स्वाद लेना है तो सन्ध्या करनी चाहिए । "
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