किसके साथ विद्युत अग्नि क्रियाओं को सिद्ध करने वाला है,

 ओम्
किसके साथ विद्युत अग्नि क्रियाओं को सिद्ध करने वाला है, सो इस मन्त्र मे कहा है-


विश्वे॑भिः सो॒म्यं मध्वग्न॒ इन्द्रे॑ण वा॒युना॑ । 
पिबा॑ मि॒त्रस्य॒ धाम॑भिः ॥१/१४/१०


स्वरचिन्हरहित मन्त्र-
विश्वेभिः सोम्यं मध्वग्न इन्द्रेण वायुना । पिबा मित्रस्य धामभिः ॥


The Mantra's transliteration in English
viśvebhiḥ somyam madhv agna indreṇa vāyunā | pibā mitrasya dhāmabhiḥ ||


पदपाठ-
विश्वे॑भिः । सो॒म्यम् । मधु॑ । अग्ने॑ । इन्द्रे॑ण । वा॒युना॑ । पिब॑ । मि॒त्रस्य॑ । धाम॑ऽभिः ॥


 The Pada Paath - transliteration
viśvebhiḥ | somyam | madhu | agne | indreṇa | vāyunā | piba | mitrasya | dhāma-bhiḥ


विश्वेभिः
सभी स्थानो से
सोम्यं मध्वग्न
सोमसम्पादन योग्य मधुरगुणयुक्त पदार्थों के वह अग्नि
इन्द्रेण वायुना
परम ऐश्वर्य कराने वाले , स्पर्श व गति गुण युक्त वायु और
पिबा मित्रस्य धामभिः
प्राण के सामर्थ्य य जल के बलों के साथ
ग्रहण करता है( अर्थात् मधुर पदार्थों के रस को पीता है)


भावार्थ-
यह विद्युत रुपी अग्नि वायु तथा शरीर मे रहने वाले प्राण के साथ वर्तमान होकर सब पदार्थों के रसो को ग्रहण करके फिर छोड़ता है।
इससे यह शिल्पविद्या का मुख्य साधन है।


मन्त्र में जीव विज्ञान-
मन्त्र मे कहा है यह विद्युत शरीर के प्राणों के साथ रहता है।
इसपर विचार करने व खोजने पर पता लगता है कि
शरीर की कोशिका विद्युत धारा बनाती है , जिससे हृदय को धड़कने में सहायक हैं। हृदयघात विद्युत के असंतुलन से भी आता है।
और तंत्रिका तन्त्र विद्युत के प्रयोग से शरीर मे और मस्तिष्क में संकेत भेजने का कार्य करता है जिससे हमलोग सोचने , महसूस करने और शरीर को चलाने का कार्य करते हैं।
विद्युत के शरीर मे और क्या कार्य , शरीर के अन्दर की वायु से , व अन्दर की अग्नि से इसका क्या सम्बन्ध है ये खोजना चाहिए।


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