मनुष्य लोग आलस्य को छोड़कर सबके द्रष्टा न्यायाधीश परमात्मा को
ओ३म् कुवत्रेवेह कर्माणि जिजीविषेच्छतं समा:।एवं त्वयि नान्यथेतोऽस्ति न कर्म लिप्यते नरे॥( यजुर्वेद ४०|०२ )
मनुष्य लोग आलस्य को छोड़कर सबके द्रष्टा न्यायाधीश परमात्मा को, और आचरण करने योग्य उसकी आज्ञा को मानकर शुभ-कर्मों को करते हुए और अशुभ कर्मों को छोड़ते हुए, ब्रह्मचर्य के द्वारा विद्या और उत्तम-शिक्षा को प्राप्त करके उपास्य- इन्द्रिय के संयम से वीर्य को बढ़ाकर, अल्पायु में मृत्यु को हटावे, और युक्त आहार- विहार से सौ वर्ष की आयु को प्राप्त करें। जैसे-जैसे मनुष्य श्रेष्ठ- कर्मों की ओर बढ़ते हैं, वैसे-वैसे ही पाप- कर्मों से उसकी बुद्धि हटने लगती हैं। जिसका फल यह होता है कि - विद्या,आयु और सुशीलता आदि गुणों की वृद्धि होती हैं।
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