विश्व मानवाधिकार दिवस पर ,वेद मत

 आज विश्व मानवाधिकार दिवस है। विश्व के प्रथम/सर्वश्रेष्ठ ज्ञान वेदों में मानवाधिकारों  विषय में अत्यंत सुन्दर सन्देश दिया गया हैं। वेदों का सन्देश न केवल सार्वकालिक है अपितु सार्वभौमिक, सर्वग्राह्य, सर्वहितकारी, सर्वकल्याणकारी,  भी है। 


वेदों का यह मंत्र देखिये  


समानी प्रपा सहवोऽन्भागः समाने योषत्रे सहवो युनाज्मि।

सम्यंचोऽग्नि सपर्य्यतारा नाभिमिवा भितः। अथर्व 3।30।6


ईश्वर वेद में आदेश देता है-


तुम्हारा पीने के पदार्थ (जल दूध आदि) एक समान हो, अन्न भोजन आदि समान हो, मैं तुम्हें एक साथ एक ही (कर्त्तव्य) के बन्धन में जोड़ता हूँ। जिस प्रकार पहिये की अक्ष में आरे (Spokes) जुड़े होते हैं उसी पर आपस में मिलजुलकर परोपकारी सदाचारी विद्वान के नेतृत्व में चलो.


मित्रस्यमा चक्षुषा सर्वाणि भूतानि समीक्षन्ताम। 

मित्रस्याहं चक्षुषा सर्वाणि भूतानि समीक्षे।

मित्रस्य चक्षुषा समीक्षा महे।-यजु 36।18


मुझे प्राणिमात्र मित्र की दृष्टि से देखें। अर्थात् कोई भी प्राणी मेरे से द्वेष न करे। मैं प्राणिमात्र को मित्र की दृष्टि से देखूँ।


"येन देवा न वियन्ति नो च विद्विषते मिथः।

तत् कृण्मो ब्रह्म वो गृहे संज्ञानं पुरुषेभ्यः।।"-अथर्ववेदः---3.30.4


शब्दार्थः--(येन) जिस संगठन मूलक ज्ञान के द्वारा, (देवाः) देवगण, (न) नहीं, (वियन्ति) परस्पर विरोध करते हैं, (च नो) और न, (मिथः) परस्पर, (विद्विषते) द्वेष करते हैं, (तत्) वह, (संज्ञानं ब्रह्म) एकता को करने वाला ज्ञान (वः) तुम्हारे, (गृहे) घर में, (पुरुषेभ्यः) मनुष्यों के लिए, (कृण्मः) करते हैं।।


यथा नः सर्व इज्जनोऽनमीवः संगमें सुमना असत्।-यजु 33। 86


हम सब का व्यवहार इस तरह का हो कि जिससे सबके सब मनुष्य हमारे संग में रोग रहित होकर, उत्तम मान वाले, हमारे प्रति सद्भाव करने वाले हो जावें।


संगच्छध्वं संवदध्वं सवो मनाँसि जानताम्।

देवा भागं यथा पूर्वे संजानाना उपासते॥

ऋग॰ 10।191।2


आपस में मिलों, संवाद करो, जिससे तुम्हारे मन एक ज्ञान वाले हों, जैसा कि तुमसे पहले के विद्वान एक मन होकर अपना कर्तव्य करते हैं।


स्वस्ति पन्था मनुचरेम सूर्याचन्द्रमसाविव।

पुनर्ददताऽघ्रनता जानता संगमें यहि॥-ऋग॰ 5। 51।15


सूर्य और चन्द्र की भाँति हम कल्याणकारी मार्ग पर चले और दानी, अहिंसक तथा विद्वान् पुरुषों का साथ करें।


आ ब्रह्मन् ब्राह्मणो ब्रह्मवर्चसी जायताम आ

राष्ट्रे राजन्य: शूर इषव्योऽतिव्याधी महारथो जायताम

दोग्ध्री: धेनुर्वोढ़ाऽनड्वानाशुः सप्ति: पुरन्धियोषा जिष्णु

रथेष्ठा: | सभेयो युवास्य यजमानस्य वीरो जायताम |

निकामे निकामे न: पर्जन्यो वर्षतु फलवत्यो न औषधय:

पच्यन्ताम योगक्षेमो न: कल्पताम्। ||- यजुर्वेद | २२ | २२ |


हे ब्रह्मन्‌-विद्यादि गुणों करके सब से बडे परमेश्वर जैसे हमारे,राष्ट्रे-राज्य में,ब्रह्मवर्चसी-वेदविद्या से प्रकाश को प्राप्त,ब्राह्मणः-वेद और ईश्वर को अच्छा जाननेवाला विद्वान्‌,आ जायताम्‌-सब प्रकार से उत्पन्न हो। इषव्यः-बाण चलाने में उत्तम गुणवान्‌,अतिव्याधी-अतीव शत्रुओं को व्यधने अर्थात्‌ ताड़ना देने का स्वभाव रखने वाला,महारथः-कि जिसके बडे बडे रथ और अत्यन्त बली वीर है ऐसा,शूरः-निर्भय,राजन्या-राजपुत्र,आ जायताम्‌-सब प्रकार से उत्पन्न हो। दोग्ध्री-कामना वा दूध से पूर्ण करनेवाली,धेनुः-वाणी वा गौ,वोढा-भार ले जाने में समर्थ,अनङ्वान्‌-बडा बलवान्‌ बैल,आशुः-शीघ्र चलने वाला,सप्तिः-घोडा,पुरन्धिः-जो बहुत व्यवहारों को धारण करती है वह, योषा-स्त्री,रथेष्ठाः-तथा रथ पर स्थित होने और,जिष्णूः-शत्रुओं को जीतनेवाला,सभेयः-सभा में उत्तम सभ्य,युवा-जवान पुरुष,आ जायताम्‌- उत्पन्न हो,अस्य यजमानस्य- जो यह विद्वानों का सत्कार करता वा सुखों की संगति करता वा सुखों को देता है, इस राजा के राज्य में,वीरः-विशेष ज्ञानवान्‌ शत्रुओं को हटाने वाला पुरुष उत्पन्न हो,नः-हम लोगों के,निकामे निकामे-निश्चययुक्त काम काम में अर्थात्‌ जिस जिस काम के लिए प्रयत्न करें उस उस काम में,पर्जन्यः-मेघ,वर्षतु-वर्षे।ओषधयः-ओषधि,फलवत्यः-बहुत उत्तम फलोवाली,नः-हमारे लिए,पच्यन्ताम्‌-पकें,नः-हमारा,योगक्षेमः-अप्राप्त वस्तु की प्राप्ति लक्षणों वाले योग की रक्षा अर्थात्‌ हमारे निर्वाह के योग्य पदार्थों की प्राप्ति,कल्पताम्‌-समर्थ हो वैसा विधान करो अर्थात्‌ वैसे व्यवहार को प्रगट कराइये।


इस विषय में विशेष जानकारी के लिए ऋग्वेद के अंतिम सूक्त का अध्ययन कीजिये।

 samelan, marriage buero for all hindu cast, love marigge , intercast marriage , arranged marriage registration call-9977987777, 9977957777, 9977967777or register free aryavivha.com/aryavivha app

Popular posts from this blog

ब्रह्मचर्य और दिनचर्या

वैदिक धर्म की विशेषताएं 

वर-वधू को आशीर्वाद (गीत)