एक वैभवशाली गुरुकुल विश्वविधालय जहाँ दस हज़ार विद्यार्थियों को पढ़ाते थे ढाई हज़ार से ज्यादा शिक्षक जिसे विदेशी इस्लामिक आक्रांता द्वारा तहस नहस कर दिया गया
एक वैभवशाली गुरुकुल विश्वविधालय जहाँ दस हज़ार विद्यार्थियों को पढ़ाते थे ढाई हज़ार से ज्यादा शिक्षक जिसे विदेशी इस्लामिक आक्रांता द्वारा तहस नहस कर दिया गया
हमारा भारतवर्ष प्राचीन काल से ही शिक्षा के क्षेत्र में काफी आगे रहा है। यहां तक कि शिक्षा के उच्च स्तर और यहां के नागरिकों के उच्च बौद्धिक स्तर के कारण दुनिया में इसे विश्व गुरु की पदवी मिली हुई थी। बाद के वर्षों में भी भारत की शिक्षा पद्धति विश्व स्तर की रही है। जब भारत में उच्च शिक्षा की बात चलती है तो सहज ही नालंदा विश्वविद्यालय याद आता है।
बिहार में पटना से 88.5 किलोमीटर और राजगीर से लगभग साढ़े 11 किलोमीटर दूर स्थित है नालंदा विश्वविद्यालय। तक्षशिला के बाद नालंदा दुनिया की दूसरी सबसे प्राचीन यूनिवर्सिटी मानी जाती है। यह विश्वविद्यालय करीब 800 वर्षों तक शिक्षा की ज्योत जलाता रहा। यदि 5 वीं सदी के इस विश्वविद्यालय को सन 1193 में मोहम्मद बख्तियार खिलजी ने तबाह नहीं किया होता तो यह विश्व के सबसे पुराने विश्वविद्यालयों बोलोना (1088), काहिरा का अल अजहर (972) और ब्रिटेन की ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी (1167) से भी पुरानी होती।
नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना पांचवी शताब्दी में गुप्त वंश के शासक सम्राट कुमार गुप्त ने की थी, इस बात की पुष्टि यहां मिली मुद्राओं से भी होती है। इस विश्वविद्यालय की स्थापना ध्यान और अध्यात्म के केंद्र के रूप में हुई थी। गौतम बुद्ध यहां कई बार आए थे। इस यूनिवर्सिटी में धर्म गूंज नाम की एक लाइब्रेरी थी इसका मतलब था सत्य का पर्वत। इस नौ मंजिला लाइब्रेरी के तीन हिस्से थे, जिनके नाम थे रत्न रंजक, रत्नों दधि और रत्न सागर। इस लाइब्रेरी में लाखो किताबों के साथ 90 लाख पांडुलिपियां रखी हुई थीं। लेकिन इस विश्वविद्यालय पर जब विदेशी आक्रांता द्वारा आक्रमण हुआ तो इस शिक्षा केंद्र की आत्मा इसकी लाइब्रेरी में आग लगा दी गई। इस आग से पूरा पुस्तकालय राख हो गया। यहां कितनी पुस्तकें और पांडुलिपि थीं, इसका अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि पूरी लाइब्रेरी की आग बुझाने में 6 माह से ज्यादा समय लगा।
इस विश्व विख्यात यूनिवर्सिटी में भारत के साथ ही जापान, चीन,कोरिया, तिब्बत, इंडोनेशिया, ईरान, ग्रीस, मंगोलिया सहित कई देशों के छात्र पढ़ने आते थे। पूरे विश्व विद्यालय में 10,000 से ज्यादा विद्यार्थी और 2700 से ज्यादा आचार्य यानी शिक्षक थे। आज के दौर से बिल्कुल अलग उस समय यहां शिक्षा का कोई शुल्क नहीं लिया जाता था, यहां तक कि निवास और भोजन भी नि:शुल्क था। इस विश्वविद्यालय में प्रवेश थोड़ा कठिन था, क्योंकि विद्यार्थियों का चयन मेरिट के आधार पर उसका बौद्धिक परीक्षण करने के बाद किया जाता था।
अनेक पुराने अभिलेखों और सातवीं शताब्दी में भारत के इतिहास को पढ़ने के बाद समझ में आता है कि नालंदा विश्वविद्यालय का प्राचीन वैभव अति संपन्नता था। यहां पढ़ने को आए चीनी यात्री ह्वेनसांग तथा इत्सिंग के यात्रा विवरणों में इस विश्वविद्यालय का विस्तार से उल्लेख है। ह्वेनसांग ने सातवीं शताब्दी में यहां विद्यार्थी के रूप में प्रवेश लिया और यहां पर शिक्षक के रूप में भी कार्य किया।
इस विश्वविद्यालय में साहित्य, ज्योतिष, साइकोलॉजी, न्याय शास्त्र, विज्ञान, इतिहास, गणित, वास्तु शिल्प, भाषा विज्ञान, अर्थशास्त्र, चिकित्सा शास्त्र आदि कई विषय पढ़ाए जाते थे।
आज के दौर में भी शिक्षा के बड़े-बड़े केंद्र और विश्वविद्यालय अस्तित्व में हैं, लेकिन नालंदा विश्वविद्यालय में अध्ययन करना उस वक्त के छात्रों का सपना होता था। इस विश्वविद्यालय से निकले छात्रों ने उस वक्त बड़े-बड़े शोध और ज्ञान के बल पर देश का नाम रोशन किया था।
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