सुनिए वैदिक विद्वान स्वामी शांतानंद सरश्वती'' दर्शनाचार्य '' का वैदिक लेख ''छान्दोग्योपनिषद् उपनिषद ''वैदिक राष्ट्र पर

 


सुनिए वैदिक विद्वान स्वामी शांतानंद सरश्वती'' दर्शनाचार्य '' का वैदिक लेख ''छान्दोग्योपनिषद् उपनिषद ''वैदिक राष्ट्र पर 

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                                                        छान्दोग्य उपनिषद् परिचय 

छान्दोग्य उपनिषद् एकादश उपनिषद् में सबसे बड़ा उपनिषद् है तथा आठ प्रपाठक में विभाजित है। इसके प्रथम प्रपाठक में 13 खण्ड , द्वितीय में 24 ,  तृतीय में 19 , चतुर्थ में 17 ,पंचम  में 24 ,षष्ठम में 14 , सप्तम में 26 और अष्टम प्रपाठक में 15 खण्ड हैं इस प्रकार इसमें कुल मिलाकर 152 खण्ड हैं। इसमें कुल 354 पृष्ठ हैं ।

 इसके प्रथम प्रपाठक के तेरह खंडों में उद्गीथ अर्थात् ओंकार की उपासना का वर्णन है । इसी प्रपाठक में - उषस्ति चाक्रायण का जीवन की आपत्ति काल में हाथी वान से झूठे उड़द खाने की कथा  का वर्णन है ।

 द्वितीय प्रपाठक में साम गान की चर्चा , भूः भुवः.स्वः की व्याख्या , एवं यजमान के लक्ष्य का उल्लेख किया गया है ।

 तृतीय प्रपाठक में ब्रह्मोपनिषद् , गायत्री महिमा ,  शरीर में ब्रह्म का प्रत्यक्ष दर्शन , शाण्डिल्य विद्या , ब्रह्मचर्य का महत्त्व एवं इतरा के पुत्र महीदास का ब्रह्मचर्य के बल पर 116 वर्ष तक जीने आदि विषयों का उल्लेख है ।

 चतुर्थ प्रपाठक में  गाड़ीवान रैक्व ऋषि की संवर्ग विद्या तथा राजा जानश्रुति की कथा , सत्यकाम जाबाल की कथा , उपकोशल व सत्यकाम की कथा , तथा सृष्टि यज्ञ आदि विषयों का वर्णन है ।

 *पंचम प्रपाठक में*प्राण  तथा इन्द्रियों के विवाद की कथा , मंथ - रहस्य , श्वेतकेतु से जैबलि प्रवाहण के पांच प्रश्न की कथा , पुनर्जन्म के लिए सुंडी के दृष्टान्त की कथा , अश्वपति राजा का वैश्वानर ब्रह्म के उपदेश आदि की कथा आदि विषयों का रोचक वर्णन है ।

 षष्ठ प्रपाठक में  श्वेतकेतु को उसके पिता  वरुण के द्वारा सदेवमग्र आसीत् के उपदेश एवं तत्वमसि के उपदेश की कथा का उल्लेख है तथा इसी प्रपाठक में वृक्षों में जीव की सत्ता सिद्ध की गई है । 

 सप्तम प्रपाठक में नारद जी को सनत्कुमार जी के द्वारा उपदेश करने की कथा , अतिवादी का अर्थ , भूमा परमात्मा ही सुख स्वरूप है अल्प अर्थात् प्रकृति में पूर्ण सुख नहीं है आदि विषयों की चर्चा है । 

 अष्टम प्रपाठक में हृदय की व्याख्या , सत्य की व्याख्या , भौतिक व आध्यात्मिक की एकता , अरण्य का अर्थ , आत्मा के निकलने का द्वार , आत्मा को जानने की इन्द्र और विरोचन की कथा आदि विषयों का विस्तार से वर्णन किया गया है ।

   इस प्रकार यह उपनिषद् अनेक कथाओं से अलंकृत  कथाओं का उपनिषद् है जिसमें उपरोक्त  देव और असुरों की कथा, प्रजापति तथा इंद्र और विरोचन की कथा, गाड़ीवान-रैक्व ऋषि और जानश्रुति पौत्रायण राजा की कथा, सत्यकाम जाबालि और उसके गुरु हारिद्रमुत मुनि की कथा, श्वेतकेतु और उसके पिता आरुणि की कथा, प्राण और इंद्रियों के विवाद की कथा, उषस्ति चक्रायण के हाथीवान से झूठे उड़द के खाने की कथा, सत्यकाम और उसके शिष्य उपकौशल की कथा, अश्वपति कैकेय की कथा, नारद और सनत्कुमार की कथा, तत्वमसि के उपदेश की कथा आदि अनेक कथाओं का बेजोड़ संगम मिलता है । 

   साथ ही इसमें 16 कला वाले पुरुष की चर्चा, यज्ञ में प्रयुक्त साम गान की चर्चा, सोमयाग की चर्चा, वसु, रुद्र, आदित्य ब्रह्मचारी की चर्चा आदि  ज्ञानवर्धक विषयों का प्रेरक वर्णन  है।

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