सन्त कबीर का सत्य स्वरूप
सन्त कबीर का सत्य स्वरूप
बामसेफियों और अंबेडकरवादियों की छटपटाहट बढ़ गयी है। जितने भी ईश्वरवादी संत हैं उन्हें एक-एक कर नास्तिक, हिंदू द्रोही, डा. अंबेडकर के विचारों और बुध्द के समीप या बौध्द साबित करने का कुचक्र भी जोर-शोर से चल रहा है। बामसेफियों की प्रचार सामग्रियों, पुस्तकों और भाषणों में डा.अंबेडकर और बुध्द के साथ इन संतों को भी जोड़ा जाना आम बात है। कबीर दास जी ऐसे ही एक संत हैं जिनकी छवि इन मूलनिवासीवादी चिंतकों द्वारा छल कपट का सहारा लेकर नास्तिक और हिंदू द्रोही बनाने का प्रयास वृहद् स्तर पर किया जा रहा है।
लेकिन सत्य क्या है यह जानने का प्रयास संत कबीर दास की वाणी से ही किया जा सकता है। यह भी ध्यान रखना होगा कि धर्म में पाखंड का विरोध करने से कोई नास्तिक नहीं हो जाता है।यदि कबीर ने हिंदू धर्म में व्याप्त कुरीतियों की आलोचना की तो गलत नहीं किया। अनेक महापुरुषों ने ऐसा किया है फिर भी आस्तिक ही रहे।धर्म नहीं छोड़ा।इसलिये अंबेडकरवादियों का यह कहना कि हिंदू धर्म में व्याप्त कुरीतियों पर प्रहार करने वाला हर व्यक्ति अंबेडकरवादी , नास्त्तिक, नवबौध्द और हिंदू द्रोही है हास्यास्पद तर्क है। यह सत्य है कि कबीर ने धर्म में प्रचलित कुप्रथाओं पर प्रहार किया लेकिन राम और हरि पर अटूट आस्था भी बनाये रखी, तथा नरक और आत्मा पर विश्वास भी व्यक्त किया।। उनकी चंद साखियां नीचे दी जा रही हैं जो साबित करती हैं कि वो डा. अंबेडकर के नूतन धर्म , दर्शन , मान्यताओं और नास्तिकता से कोसों दूर थे। साथ में कबीरपंथी विद्वानों की लिखित उस पुस्तक का हवाला भी है जिससे ये साखियां ली गयी हैं। पढ़ें और अंबेडकरवादियों को आइना दिखायें।
1- कबीर कूता राम का, मुतिया मेरा नाऊं ।
गले राम की जेवड़ी, जित खैवें तित जाऊं ।।
अर्थ: कबीर दास कहते हैं कि मैं तो राम का ही कुत्ता हूं और नाम मेरा मुतिया(मोती) है। गले में राम नाम की जंजीर पड़ी हुयी है। मैं उधर ही चला जाता हूं जिधर मेरा राम मुझे ले जाता है।
2- मेरे संगी दोई जण, एक वैष्णों एक राम ।
वो है दाता मुकति का, वो सुमिरावै नाम।।
अर्थ: कबीर साहिब कहते हैं कि मेरे तो दो ही संगी साथी हैं- एक वैष्णव और दूसरा राम। राम जहां मुक्तिदाता हैं वहीं वैष्णव नाम स्मरण कराता है। यहां भी डा. अंबेडकर और संत कबीर विपरीत ध्रुवों पर खड़े साबित होते हैं।
3- सबै रसायन मैं किया, हरि सा और ना कोई।
तिल इक घट में संचरे,तौ सब तन कंचन होई।
अर्थ: कबीर कहते हैं मैंने सभी रसायनों का सेवन कर लिया मगर हरि रस जैसा कोई अन्य रसायन नहीं मिला। यदि यह एक तिल भी घट में, शरीर में पहुंच जाये तो संपूर्ण तन कंचन में बदल जाता है। वासनाओं का मैल जल जाता है और जीवन अत्यंत निर्मल हो जाता है।
4-कबीर हरि रस यौं पिया, बाकी रही न थाकि ।
पाका कलस कुंभार का, बहूरि चढ़ी न चाकि ।।
अर्थ : कबीर दास कहते हैं कि श्री हरि का प्रेम रस ऐसा छककर पिया है कि कोई अन्य रस पीना बाकी नहीं रहा। कुम्हार बनाया हुआ जो घड़ा पक गया वो दोबारा चाक पर नहीं चढ़ता है।
5- क्यूं नृप-नारी नींदिये, क्यूं पनिहारिन कौ मान।
मांग संवारै पील कौ, या नित उठि सुमिरै राम।।
अर्थ : कबीर साहिब कहते हैं कि रानी को यह नीचा स्थान क्यूं दिया गया और पनिहारिन को इतना ऊंचा स्थान क्यूं दिया गया ? इसलिये कि रानी तो अपने राजा को रिझाने के लिये मांग संवारती है, श्रृंगार करती है लेकिन वह पनिहारिन नित्य उठकर अपने राम का सुमिरन करती है।
6-दुखिया भूखा दुख कौं,सुखिया सुख कौं झूरि।
सदा अजंदी राम के, जिनि सुखदुख गेल्हे दूरि।।
अर्थ: कबीर कहते हैं कि दुखिया भी मर रहा है और सुखिया भी- एक बहुत अधिक दुख के कारण और अधिक सुख के कारण । लेकिन रामजन सदा ही आनंद में रहते हैं।क्योंकि उन्होंने सुख और दुख दोनों को दूर कर दिया है।
7- कबीर का तू चिंतवे, का तेरा च्यंत्या होई ।
अणचंत्या हरि जी करै, जो तोहि च्यंत न होई।।
अर्थ: कबीर साहिब कहते हैं तू क्यों बेकार की चिंता कर रहा है, चिंता करने से होगा क्या ? जिस बात को तूने कभी सोचा ही नहीं उसे अचिंतित को भी तेरा हरि पूरा करेगा।
8- कबीर सब जग हंडिया, मांदल कंधि चढ़ाइ ।
हरि बिन अपना कोऊ नहीं,देखे ठोंकि बजाइ ।।
अर्थ: संत कहते हैं मैं सारे संसार में एक मंदिर से दूसरे मंदिर का चक्कर काटता फिरा। बहुत भटका। कंधे पर कांवड़ रख पूजा की सामग्री के साथ। सभी देवी-देवताओं को देख लिया, ठोक-बजाकर परख लिया।लेकिन हरि को छोड़कर ऐसा कोई नहीं मिला जिसे मैं अपना कह सकूं।
9- कबीर संसा कोउ नहीं, हरि सूं लाग्या हेत ।
काम क्रोध सूं झूझड़ा, चौड़े मांड्या खेत ।।
अर्थ: कबीर कहते हैं कि मेरे चित्त में कुछ भी संशय नहीं रहा, हरि से लगन जुड़ गयी। इसीलिये चौड़े में आकर रणक्षेत्र में काम और क्रोध से जूझ रहा हूं।
10- मैं जाण्यूं पढ़िबो भलो, पढ़िबो से भलो जोग।
राम नाम सूं प्रीति करी, भल भल नीयौ लोग ।।
अर्थ: कबीर साहिब कहते हैं- पहले मैं समझता था कि पोथियों का पढ़ा बड़ा आदमी है। फिर सोचा कि पढ़ने से योग साधन कहीं अच्छा है। लेकिन अब इस निर्णय पर पहुंचा हूं कि राम नाम से ही सच्ची प्रीति की जाये तो ही उध्दार संभव है।
11- राम बुलावा भेजिया, दिया कबीरा रोय ।
जो सुख साधु संग में, सो बैकुंठ न होय ।।
अर्थ: कबीर कहते हैं कि जब मेरे को लाने के लिये राम ने बुलावा भेजा तो मुझसे रोते ही बना। क्योंकि जिस सुख की अनुभूति साधुओं के सत्संग में होती है वह बैकुंठ में नहीं।
12- वैध मुआ रोगी मुआ, मुआ सकल संसार ।
एक कबीरा ना मुआ, जेहि के राम अधार ।।
अर्थ: कबीर दास कहते हैं कि वैद्य, रोगी और संसार नाशवान होने के कारण ही उनका रूप-रूपांतर हो जाता है।लेकिन जो राम से आसक्त हैं वो सदा अमर रहते हैं।
13- दया आप हृदय नहीं, ज्ञान कथे वे हद ।
ते नर नरक ही जायेंगे, सुन-सुन साखी शब्द।।
अर्थ: कबीर कहते हैं कि जिनके हृदय में दया का भाव नहीं है और ज्ञान का उपदेश देते हैं, वो
चाहे सौ शब्द सुन लें, लेकिन नरकगामी ही होंगे।
14- जेती देखो आत्म, तेता सालिगराम ।
साधू प्रतषि देव है, नहीं पाहन सूं काम ।।
अर्थ: संत कहते हैं कि जितनी आत्माओं को देखता हूं उतने ही शालिग्राम दिखाई देते हैं। प्रत्यक्ष देव तो मेरे लिये सच्चा साधु ही है। पाषाण की मूर्ति पूजने से मेरा क्या भला होने वाला है।
लेखक - Arun Lavania