आज का वेद मंत्र
🕉️🙏ओ३म् सादर नमस्ते जी 🙏🕉️
🌷🍃 आपका दिन शुभ हो 🍃🌷
दिनांक - - १३ सितम्बर २०२२ ईस्वी
दिन - - मंगलवार
🌔 तिथि - - - तृतीया ( १०:४० तक तत्पश्चात चतुर्थी
🪐 नक्षत्र - - रेवती ( २५:०२+ तक तत्पश्चात अश्विनी )
पक्ष - - कृष्ण
मास - - आश्विन
ऋतु - - शरद
,
सूर्य - - दक्षिणायन
🌞 सूर्योदय - - दिल्ली में प्रातः ६:०९ पर
🌞 सूर्यास्त - - १८:२५ पर
🌔 चन्द्रोदय - - २०:२२ पर
🌔चन्द्रास्त - - ०८:४८ पर
सृष्टि संवत् - - १,९६,०८,५३,१२३
कलयुगाब्द - - ५१२३
विक्रम संवत् - - २०७९
शक संवत् - - १९४४
दयानंदाब्द - - १९८
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🚩‼️ओ३म्‼️🚩
🔥“नास्तिक, ईश्वर के सत्यस्वरूप से अनभिज्ञ, मिथ्या कर्मकाण्ड व उपासना करने वाले मनुष्यों का परलोक वा भविष्य असुखद”।
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🌷हम आंखों से जितना व जैसा संसार देखते हैं वह सब और जो नहीं देख पाते वह सब भी सच्चिदानन्द, सर्वज्ञ, सर्वव्यापक और सर्वशक्तिमान परमेश्वर की रचना है। उसी परमात्मा ने सृष्टि के आरम्भ में चार ऋषियों को उत्पन्न कर उनके द्वारा ईश्वर, जीवात्मा और सृष्टि का यथार्थ व सत्य ज्ञान दिया था जिससे मनुष्य अज्ञान व अन्धविश्वासों में न भटके। महाभारत काल तक वेदों का यथार्थ ज्ञान देश भर में उपलब्ध था। इसके बाद अव्यवस्था उत्पन्न होने व विद्वानों की कमी व उनके आलस्य प्रमाद और पुरुषार्थरहित जीवन के कारण धीरे धीरे वैदिक ज्ञान विलुप्त होता रहा। ईश्वर की कृपा व ऋषि दयानन्द (१८२५-१८८३) के पुरुषार्थ से ईसा की उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में पुनः वेदों का प्रकाश-प्रचार हुआ। आज भी ऋषि दयानन्द के ग्रन्थ सत्यार्थप्रकाश, ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका सहित उनके ऋग्वेद भाष्य (आंशिक) व यजुर्वेद भाष्य से सत्य विद्याओं का प्रकाश हो रहा है।
वेदों के अध्ययन से स्पष्ट होता है कि इस संसार को बनाने, चलाने व पालन करने वाली एक सत्ता है जिसे ईश्वर कहा जाता है। ईश्वर ने यह संसार जीवों वा जीवात्माओं के लिए बनाया है। जीव एक चेतन सत्ता है। यह जीव अत्यन्त सूक्ष्म, एकदेशी, अल्पज्ञ, अल्प शक्ति वाला, अनादि, अनुत्पन्न, अविनाशी और अमर सत्ता है। सृष्टि प्रवाह से अनादि है। ईश्वर ने संसार में विद्यमान असंख्य वा अनन्त जीवों को उनके पूर्व कृत कर्मों के अनुसार सुख व दुःख प्रदान करने के लिए ही यह सृष्टि बनाई है। हम देखते हैं कि जिस मनुष्य में जितना ज्ञान व सामर्थ्य होती है, वह उसके अनुरूप कर्म करता है। कोई मनुष्य निकम्मा या खाली रहना नहीं चाहता।
वेदों में शिक्षा है कि मनुष्य कर्म को करते हुए ही सौ वर्ष तक जीने की इच्छा करे। बिना कर्म किये मनुष्य जीवित नहीं रह सकता। बतातें हैं कि पलकों का खुलना या बन्द होना अर्थात् आंखों की पलकों का झपकना आदि क्रियायें भी आत्मा के संकल्प के कारण ही होती हैं। मनुष्य शरीर में प्राण जन्म से मृत्यु पर्यन्त चलते ही रहते हैं। सद्कर्मों वा पुरुषार्थ से ही मनुष्य को सुख व शान्ति मिलती है। मनुष्य जब रोगी हो जाता है तो वह काम करने में असमर्थ होता है। उस समय उसकी यही भावना होती है कि वह जल्दी से जल्दी स्वस्थ हो जाये और अपने ज्ञान व शक्ति के अनुसार कर्म व पुरुषार्थ कर सुखी हो। ईश्वर भी एक चेतन सत्ता है। वह सर्वज्ञ है और सर्वशक्तिमान है। ईश्वर को अनादि काल से सृष्टि उत्पत्ति, पालन व प्रलय करने का ज्ञान व अनुभव है। इसी कारण वह सृष्टि की रचना व पालन करता है। सभी जीवात्मायें उसकी सन्तानों के समान है।
अतः उसका कर्तव्य है कि जीवात्माओं को सुख प्रदान करने के लिए वह सभी कार्य करें जो कि माता-पिता को अपनी सन्तानों के प्रति करने आवश्यक व उचित होते हैं। यह ईश्वर द्वारा सृष्टि की रचना करने के साधारण कारण व तर्क हैं।
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🚩📚आज का वेद मंत्र 📚🚩
🌷ओ३म् स्वस्ति नो मिमीतामश्विना भग: स्वस्ति देव्यदितिरनर्वण:।स्वस्ति पूषा असुरो दधातु न: स्वस्ति धावापृथिवी सुचेतुना। ( ५|५१|११ )
💐अर्थ :- परमेश्वर हमारा कल्याण करें। ऐश्वर्यरूप! आपका जल और वायु सुख का सम्पादन करें। अखण्डित प्रकाश वाली विद्युत् विद्या हम लोगों को कल्याण करें। पुष्टिकारक अन्न, दुग्धादि पदार्थ तथा प्राणों को बल देने वाले मेघादि हमें कल्याण को देने वाले हो।द्यौ तथा पृथ्वी उत्तम विज्ञान के साथ हमारे लिए कल्याणकारी हो।
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🔥विश्व के एकमात्र वैदिक पञ्चाङ्ग के अनुसार👇
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🙏 🕉🚩आज का संकल्प पाठ🕉🚩🙏
(सृष्ट्यादिसंवत्-संवत्सर-अयन-ऋतु-मास-तिथि -नक्षत्र-लग्न-मुहूर्त) 🔮🚨💧🚨 🔮
ओ३म् तत्सत् श्रीब्रह्मणो द्वितीये परार्द्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे 【एकवृन्द-षण्णवतिकोटि-अष्टलक्ष-त्रिपञ्चाशत्सहस्र- त्रिविंशत्युत्तरशततमे ( १,९६,०८,५३,१२३ ) सृष्ट्यब्दे】【 नवसप्तत्युत्तर-द्विसहस्रतमे ( २०७९ ) वैक्रमाब्दे 】 【 अष्टनवत्यधिकशततमे ( १९८ ) दयानन्दाब्दे, नल-संवत्सरे, रवि- दक्षिणयाने शरद -ऋतौ, आश्विन -मासे ,कृष्ण - पक्षे, - तृतीयायां तिथौ, - रेवती नक्षत्रे, मंगलवासरे , तदनुसार १३ सितम्बर , २०२२ ईस्वी , शिव -मुहूर्ते, भूर्लोके जम्बूद्वीपे भारतवर्षे भरतखण्डे
आर्यावर्तान्तर्गते.....प्रदेशे.... जनपदे...नगरे... गोत्रोत्पन्न....श्रीमान .( पितामह)... (पिता)...पुत्रोऽहम् ( स्वयं का नाम)...अद्य प्रातः कालीन वेलायाम् सुख शांति समृद्धि हितार्थ, आत्मकल्याणार्थ, रोग, शोक, निवारणार्थ च यज्ञ कर्मकरणाय भवन्तम् वृणे
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