शुद्ध रामायण
शुद्ध रामायण
वाल्मीकि रामायण का हिन्दी संस्करण। रामायण के विषय में अनेक भ्रांतियां हैं। शुद्ध रामायण में इसी समस्या का हल है। वाल्मीकि रामायण पर आधारित सरल हिन्दी में उच्च स्तरीय पुस्तक है। बीच बीच में कहीं कहीं संस्कृत श्लोक भी दिए हैं।
रामायण की कथा और उपदेश दोनों का संतुलन रखा गया है। समय समय पर रामायण में जो मिलावट की गई है उसको भी बताया गया है। पुस्तक किशोरों, युवाओं और प्रौढों के लिए समान रूप से उपयोगी है।
480 पृष्ठ 8"X10" सजिल्द
मूल्य ₹260 (पैकिंग व डाक खर्च सहित)
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श्रीराम आदर्श क्यों हैं?
जब भरत राम को वन से अयोध्या लौटाने के लिए वन में गए तो श्री राम ने कुशल पूछने के साथ भरत को राजनीति का उपदेश दिया। यह उपदेश राजा के कर्त्तव्यों का एक प्रकार का चार्टर (स्वीकृति) है। इससे पता चलता है कि रामायण काल में राजा स्वच्छंद (मर्जी का मालिक) नहीं था।
प्रभु राम भरत से पूछते हैं –
1. क्या तुम सहस्रों मूर्खो के बदले एक विद्वान के कथन को अधिक महत्त्व देते हो ?
2. क्या तुम जो व्यक्ति जिस कार्य के योग्य है उससे वही काम लेते हो ?
3. तुम्हारे कर्मचारी बाहर भीतर पवित्र है न ? वे किसी से घूस तो नहीं लेते ?
4. यदि धनी और निर्धन में विवाद हो, और वह विवाद न्यायालय में विचाराधीन हो, तो तुम्हारे मंत्री धन के लोभ में आकर उसमे हस्तक्षेप तो नहीं करते ?
5. तुम्हारे मंत्री और राजदूत अपने ही देश के वासी अर्थात अपने देश में उत्पन्न हुए हैं न ?
6. क्या तुम अपने कर्मचारियों को उनके लिए नियत वेतन व भत्ता समय पर देते हो ? देने में विलम्ब तो नहीं करते ?
7. क्या राज्य की प्रजा कठोर दंड से उद्विग्न होकर तुम्हारे मंत्रियो का अपमान तो नहीं करती ?
8. तुम्हारा व्यय कभी आय से अधिक तो नहीं होता ?
9. कृषि और गौपालन से आजीविका चलाने वाले लोग तुम्हारे प्रीतिपात्र है न ? क्योंकि कृषि और व्यापार में संलग्न रहने पर ही राष्ट्र सुखी रह सकता है।
10. क्या तुम वेदो की आज्ञा के अनुसार काम करने में सफल रहते हो ?
11. मिथ्या अपराध के कारण दण्डित व्यक्तियों के जो आंसू गिरते हैं, वे अपने आनंद के लिए शासन करने वाले राजा के पुत्र और पशुओ का नाश कर डालते हैं।
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